________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तेम छतां तेवी कथाओ सांभळ्याथी पण जेने ते तरफ ,लक्ष नथी ते त्रीजा बधिर जाणवा ए त्रीजा प्रकारचें बधिरत्व प्रशस्य छे. तेथी कर्म प्रपंच क्षय थाय छे. दुर्जनजन ज्ञानी पुरुषने नपुंसक कहेतो पण ज्ञानीने तेथी मनमा खेद थतो नथी, कारणके नपुंसकत्व ए आत्मानो स्वभाव नथी. कर्म संयोगे नपुंसकत्व पमाय छेजेने स्त्री तथा पुरुष बन्ने, भोगववानी इच्छा थाय छे. ते एक नपुंसक स्त्री भोगववानी इच्छा छता अशक्ति आदि कारणोथी स्त्री भोगवी शके नहीं ते बीजो नपुंसक विषय भोगनी इच्छाना नाशथी स्त्री भोगववाथी जे पराङ्मुखपणुं ते त्रीचं नपुंसक्त्व ए आत्मानो स्वभाव नथी. कर्म संयोगे नपुंसकत्व पमाय छे, जेने स्त्री तथा पुरुष बन्ने भोगववानी इच्छा थाय छे. ते एक नपुंसक-स्त्री भोगववानी इच्छा छतां अशक्ति आदि कारणोथी स्त्री भोगवी शके नहीं ते बीजो नपुंसक, विषय भोगनी इच्छाना नाशथी स्त्री भोगवचाथी जे पराङ्मुखपणुं ते त्रीजुं नपुंसकत्व, आ त्रीजु नपुंसकत्व ब्रह्मचर्य पदनी प्राप्ति करावी आपी कर्मनो नाश करे छे. बाकी पहेलां बे प्रकारनां नपुंसकत्वथी संसारनी वृद्धि ज थाय छे, पुरुषत्व; स्त्रीत्व, अने नपुंसकत्व ए त्रण थकी आत्मा न्यारो छे, तो बीजो मने नपुंसक कहे तेथी मारे केम शोक करवो जोइए. दुर्जननो एवो स्वभाव छे के कोइनी पण उत्कृष्टता सहन थाय नहीं, दुर्जन सत्यवादी पुरुषने मिथ्यावादी करवा धारे छ, निष्कलंकी ने कलंकी धारे छे, आ लोक
For Private And Personal Use Only