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ज्ञायकछ, अनंत सुखनो भोक्ताळ छतां कर्मरुप शत्रु मने मारा गुणो प्राप्त करवा देतो नथी. मारे तेना कह्या प्रमाणे वर्तवं पडे छे, मारा उपर कर्म हुकम चलावे छे. तेनो हुँ दास बनी गयोछं. कर्मनी मारा करतां अल्पशक्ति छतां अरे तेना वशमां रेहेवू पडे छे. ते कर्मथी बनेखें साडात्रण मणना शरीरमां मारे रहेवू पडे छे. अने हाडकां तथा लोहीथी भरेला शरीरने उपाडी मारे फरवू पडे छे. कर्म जड छे. अने आत्मा चेतनायुक्त छे, छतां तेनो हुँ ताबेदार बन्योढुं. माटे कर्म उपर अदेखाइ करवी जोइए. अने कर्माष्टक नो नाश करवा अनेक उपायो योजवा जोइए. शरीरनो तावेदार हुं के शरीर मारु ताबेदार, नाना हुं कंइ तेनो ताबेदार नथी. हवे में चिदानंदरूप. मारुं स्वरुप जाण्यु. शरीरने मारे वश राखवू जोइए. आ प्रमाणे अदेखाई करनार संसार समुद्र तरे छे. कोइ मने मूर्ख कहे तो तेथी मारे शृं? ज्यां मुधीमें मारु पोतार्नु यथार्थ स्वरूप जाण्युं नथी त्यां सुधी मूर्खज छं. मेट्रीकमां पास थयो, एल एल बी, एम, ए, आदि बीरुद धारण कयों पण हूं कोणछं, मारु शुं छे ? माराथी अन्य कोण छे ? मारुं स्वरुप शुं छे ? इत्यादी विचार कर्यों नहीं त्यां सुधी मूर्खन छ. कडं छे केमूर्खत्वं हि सखे ममापि रुचितं यस्मिन् यदष्टौ गुणाः। निश्चिन्तो बहुभोजनोऽत्रपमनानक्तंदिवाशायकः।
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