________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तो नाहक ते शब्दयी खुशी अगर दुःखी केम थाउं ? हे आत्मन् कोई पोताने कपटी कहेतो मनमा विचार के, कपट एटले बीजाने छेतरवू आ गुण मारामां आवे तो धन्य भाग्य मारां-कारणके आत्मा ए स्वद्रव्य छे ते थकी. पर एटले बीजं पुद्गल द्रव्य छे. तेनो संबंध आत्मानी साये अनादिकाळथी थयो छे ते कर्मना आठ भेद छे. उत्तर प्रकृति एकशो अहावन छे. तेनी साथे आत्मा परभावनो कर्ता भोक्ता थयो छे ते बीजु कर्म तेने छेतरवानी अर्थात् ते थकी छुटवानी बुद्धि जो मारामा प्रगट थाय अने राग द्वेषादि शत्रुओने आत्मस्वभावे रमी छेतरूं तो खरो कपटी कहेवालं, पण रागादि शत्रुओ आत्माने छेतरे त्यारे हुं कपटी शी रीते को वाउं? परपुद्गल संगे रमतो हुं बीजाने मारुं परधन हरण करूं. व्यभिचार करूं, जुटुं बोलं, क्रोध करुं, मान करूं, परने पोतार्नु मानु तो अलबत्त कर्म शत्रुथी हुँ छेतरायो, एम नकी कही. शकाय त्यारे हुं ठगायो. मोटे बीजो मने कपटी कहे छे तो एवा प्रकारचें कपट मने प्राप्त थाओ, बाकी अन्यने छेतरवानी पुदि ते.रुप कपटनो नाश थाओ, मने कोई पापी कहे तो तेथी मारे हर्ष मानवो जोइये, कारणके शत्रुने मारे तेने पापी कहेवो, मारा शत्रु माणसो नथी. कारण के दरेक जीवो मारा स्वजातीय छे. सिद्ध समान छे. ते कोइनु निश्चय नयथी जोतां खराब करवा समर्थ नथी, मारा खरा शत्रु चार गतिमां भटकावनार राग द्वेष अरि छे तेनो नाश करूं तो हुँ पापी कहे
For Private And Personal Use Only