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समुद्र आदि सर्व समुद्रमां स्वयंभुरमण समुद्र मोटा छे तेम सर्व अनुभवमा आत्मानुभव मोटो छे. ते अनुभवनी प्राप्ति तां जन्म जरा मरणनां दुःख रहेतां नथी. आत्मा पोतानुं स्वरुप गुरु पासेथी सांभळे अने त्यारबाद श्रद्धा करे.
प्रश्न- आत्म स्वरुप श्रवण कर्या विना शुं सहज ज्ञान थतुं नथी ?
उत्तर- आत्मतत्त्व स्वरुप श्रवण कर्या विना आत्मज्ञान थतुं नथी. आत्म तत्त्व ज्ञान प्राप्तिमां श्रवणेोद्रिन्य निमित्त कारण छे. श्रवणेंद्रिय रूप कारण विना आत्म तत्त्व ज्ञान धतुं नथी. ते उपर हे शिष्य एक दृष्टांत कहुं हुं ते तुं सांभळ. एक राजा हतो तेने एक प्रधान हतो. राजाए एक दिवस प्रधानने पुछयुं के हे प्रधान ! तत्वज्ञाननी प्राप्ति शाथी थाय : प्रधाने कर्तुं के शास्त्र सांभळ्याथी. राजाए कहूं. शास्त्र सांभळ्या विना केम तत्वज्ञाननी प्राप्ति न थइ शके ? प्रधाने क. कारणविना कार्यनी उत्पत्ति थती नथी. तमारु कहें केम सत्य मनाय ? प्रधाने करूं, आपनी आज्ञा होय तो मारुं कथन सत्य करी बतानुं राजाए कनुं, जेबी तमारी मरजी, राजाने एक नानो दोकरो हतो ते पुत्रने प्रधान पोताने घेर राजानी आज्ञाथी लइ गया, पोतानुं कथन सत्य करवा प्रधाने ए पुत्रने भयरामा उतार्यो के जे भयरामां सूर्य प्रकाश पण आवी शके नही. कोइनो शब्द पण संभळाय नही. त्यां एक बकरीनुं बच्युं बांध्युं अने छोकराने
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