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गुरौ विमुखतायाते विमुखाः सर्वदेवताः भवति क्रियमाणंच पुण्यंपापंहि जायते ॥३॥ __ ज्यारे गुरु विमुख थाय छे, त्यारे सर्व देवताओ पण पण विमुख थाय छे. अने जे पुण्य करवामां आवे छे, ते पण पाप रुप थइ जाय छे अर्थात् गुरु महाराजना प्यारथी सर्व क्रिया शुभ फळने आपनारी थाय छे. अज्ञानान्ध्यनिहन्ता विरचितविज्ञान पंकजोल्लासः॥ मानसगगनतलं मम भासयति श्रीनिवास गुरुभानुः४ः
अज्ञान रुप अंधकारनो नाश करनार तथा ज्ञान रुप कमळनो जेणे विकास कयों छे एवा लक्ष्मीना निवास स्थळ भूत गुरु सूर्य, मारा मनरुप आकाशना तलने प्रकाशित करे छे. शरणं नहि मम जननी न पिता न सुता न चसोदरा नान्ये ॥ परमं शरणमिदमेव वरणं मम मूनिदैशिकन्यस्तं
मारुं शरण माता नथी, तेम पिता पण नथी, पुत्र भाइ पण नथी, पण मारी परम विश्रान्ति तो श्रीसद्गुरुए मारा मस्तक उपर मूकेला चरणमांज रही छे. अलबत् श्रीसद्गुरु विना अध्यात्म शान्ति थती नथी.
भगवद्गीतामां पण कहयुं छे के.
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