________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जोइ, तेनु निरासन करवा श्राद्धधर्म वा यतिधर्म अंगीकार करे छे, अहो चतुःषष्टि इंद्रपूजित शासननायक वीर प्रभुनी केवी महत्त्वता! माणसोए आरीसा समान थर्बु जोइए, जेम आरीसामां कालु रुप भासे छे, धोढुं रुप भासे छे, तेथी आरीसोते काळी वस्तु पोताना प्रतिबिंबित थइ तेने माटे खेद करतो नथी, तद्रीत्या मनुष्य ज्ञानवान् थइ, चोर, व्यभिचारी, कपटी,जुगारी, खुनीनांकुकृत्य जाणी पोते समभावे रहे पण द्वेष बुद्धि या तिरस्कारथी निहाळे नही, ए सारांश छे. तिरस्कार बुद्धि कोइ पति थाय नहीं, तेवी प्रवृत्ति करवी जोइए, अने समभावे आत्माने भाववो. आ आत्मा साधक महापुरुषतुं पहेलु पगीयुं छे. ... बीजं पगथीयु ए छे के, गंभीर गुणधारण करी तुच्छ बुद्धि त्यागवी ढंकी द्रष्टिनो त्याग करको, पारकां छिद्र जोवामां आवे तो पण बीजानी आगळ कहेवां नही, ते गंभीर गुण जाणवो. समुद्रमा जेम गंभीरता रही छे; पोतानी मर्यादा मुकतो नथी, तेमा विष रह्यं छे, रत्न रह्यां छे, तेनुं पाणी अत्यंत छे. पण गंभीर गुण चित्त चमत्कृति उपजावे छे. कोइनां छिद्र जोवां नही. कोइनां मर्म प्रकाशवां नहीं, कोइनी वात जाणता हो. इए अने ते वातथी सामा माणसोने नुकशान थतुं होय तेवी बात बीजा माणसने कहेवी नहीं, कोइना अवगुण दोषो दे
खवामां आवे तो आपणे कागडा जेवा बनवू नही. जेम कागडो 'पशुओनां शरीरमां चांदा पडयां होय छे, तेना उपर जइ बेसे छे, तेम आपणे करवू नहीं, गंभीर हृदय राखवाथी घणान
For Private And Personal Use Only