________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८९
स्वरुपमां दृष्टेि दीधी, श्वसुरना दोष माटे क्रोध कर्यो नहीं, अहो धन्य छे ! एवा मुक्ति श्री साधक महात्मा गजसुकपालने बळी धन्य ले ते मेतार्यमुनि के जे सोनीए उपद्रव कर्या छतां पण समभावे रह्या, पुद्गल तरफ द्रष्टि दोघी नही, अने सोनी उपर द्वेष बुद्धिथी जोयुं नहीं, अने शरीरयोगे थती वेदना सहन करी वळी अर्जुनमाळी दररोज सात माणसनी हिंसा करतो हतो, पण श्रीमन्महावीर स्वामीनी शर्करा समान वचनामृत श्रवण करी सावद्ययोग त्याग करी, आत्म तत्व साधक मनुष्योनां वाग् बाणने हृहयमां स्थान आप्युं, पोताना ध्यानमां वर्त्या, क्रोधाकुळ वृत्तिने हृदयमां स्थान आप्युं नहीं, समभावे पोताना आत्माने भाववा लाग्या, धन्य छे एवा आत्म साधक वीरपुरुषने ! त्रिजगत् पूज्य परमा-
पदसाधक चरम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामीने गोशाळाए तेजोलेश्या मूकी, पण क्रोधना त्यागी वीर प्रभु अन्यायी उपर केम क्रोध द्रष्टि करे ? क्रोधनो संपूर्ण संक्षय थवाथी, क्रोध क्यांथी उदय थाय ? श्रीवीर प्रभुने कैवल्यज्ञान उपज्या बाद ज्ञाने करी सर्व जगत् निरख्युं कोइने खूनी देख्या कोइने व्यभिचारी नीरख्या, समवसरणमां पण हजारो पापी आवता हशे, व्यभिचारी आवता हशे, तेमनुं स्वरुप भगवान् जाणे छे, छतां तेमना उपर भगवान् तिरस्कारनी द्रष्टिथी जोता नथी.. परमार्थ हत्या, स्वशरीर वाक्थी धर्मोपदेश देइ तेमने ज्ञान चक्षु अर्पे छे, तेथी पोताना दोष ते पापीओ पोतानी मेळे
For Private And Personal Use Only