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(चोपाइ) एहनो जेणे पाम्यो त्याग । ओघे एहनो जेणे राग । ए बेविण त्रीजो नही साध । भाष्यो संमति अर्थ अगाध ॥ १ ॥ द्रव्यानुयोगनुं जेने संपूर्ण ज्ञान थयुं छे, अथवा जेने द्रव्यानुयोग भणवानो राग छे, ए बेविना त्रीजो कोइ साधु नथी, ए प्रमाण संमतितर्कमां कथन कर्यु छे. माटे द्रव्यानुयोग ज्ञान प्राप्तिअर्थे सद्गुरुर्नु सेवन करवू, द्रव्यानुयोग जाण्या विना सम्यक्त्वनी प्राप्ति यती नथी, तो पछी बीजी शी वात! जेम जेम आत्म तत्व संबंधी विशेष ज्ञान मेळवाय छे, तेम तेम अंतर रूद्धिनी ओळखाण पडे छे, अने अंतर लक्ष्मी ओळख्या बाद बाह्य लक्ष्मी उपरथी प्रेमलालसा टळेछ, आत्मगुणनी श्रद्धा थाय छे. अने तेनी भक्ति जागे छे, अने अंतर आत्म लक्ष्मी ग्रहण करवा योग्य छे, पौद्गलिक धर्म त्याग करवा योग्य छ, एम विवेक प्रगटया बाद पुद्गल संबंधी धर्मोनुं भान आत्मा भूलेछे, अने आश्रवद्वार रुंधे छे, अने संवरमा प्रवर्ततो आत्मा घाती कर्मनो क्षय करी कैवल्प लक्ष्मी प्राप्त करे छे, अने अनंत मुख आविर्भावरुपे थाय छे. आत्मा नपुंसक नथी, पुल्लिंग नथी, स्त्रीलिंग नथी, क्षत्रिय,
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