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अनादि काळथी कर्म संयोगे पोताना शुद्ध परिणामभो त्याग करी, कर्म संयोगे अशुद्ध परिणतीवंत कहेवाय छे. पण जेम ग्रहण छूटा बाद सूर्यनो प्रकाश शुद्ध प्रकाशे छे, तथा मणि जेम मलीनताना अपसारण थकी स्वप्रकाशे करी शुद्ध प्रकाशे छे, तेम आत्मा पण कर्मना संपूर्ण संक्षय थकी असंख्याता प्रदेशे निर्मळ थयो छतो शुद्ध प्रकाशे छे. ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, अचल, अटल, अव्याबाध, क्षायकसम्यक्क आदि अनंत गुण आत्मामा रहेछे, ते गुणो सांसारिक जीवोने कर्मावरणे करी तिरोभावे विद्यमान छे, ते गुणोरुप पोतानी खरी शाश्वती अविनाशी, अखंड, परिपूर्ण रुद्धि आत्माने ग्रहण करवा योग्य छे. ते तिरोभावे रहेली स्वलक्ष्मीने आविर्भावे करवी. पोतानी एटले आत्मानी: ज्ञानादि अनंत लक्ष्मीनो उपयोग
व्यापार आत्माए करो जोइए, ए आत्मानी मुख्य फरज छे. रूद्धि बे' प्रकारनी छे. १ आत्मानी रूद्धि २ पौद्गलिक रूद्धि अनंत गुण आत्मामा रह्या छे, ते आत्मानी रूद्धि जाणवी. अने सोनुं रुपुं चांदी, नोट, मोती, माणेक, मणि, घर, हाट इत्यादिक पौद्गलिक रुद्धि जाणवी. आत्मानी रूद्धि अरुपी छे, पौद्गलिक रूद्धि रुपी छे, विनाशी छे, पौद्गलिक रुद्धि जड छे, पौद्गलिक रुद्धिनो संबंध उपचारिक छे. पौदगलिक रुद्धि कोई दिवस पोतानी थइ नथी अने थवानी नथी, ए पौद्गलिक रुद्धि अर्थे घणा जीवो अनेक प्रकारनां
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