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आत्मा कर्मनो संबंध छे. विंध्य साधुए कह्यु, एवं सांभळ्यु नयी, वळी प्रत्याख्यान प्रवाद नवमुं पूर्व सांभळतां थकां, पञ्चलखाणनो अधिकार आव्यो, ज्यारे साधु दीक्षा ले, त्यारे ___ करेमिभंते सामाइयं सव्वं सावजं जोगं पञ्चख्वामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न काखेमि करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि. .. अत्र जावजीवाए ए पद कहेवू नहीं. ए पद कहेतां साधु साध्वीने दोष लागे छे; कारण के जीवq त्यां सुधी सावद्ययोगर्नु पञ्चख्खाण अने मृत्यु बाद पच्चख्खाण मोकळ; त्यारे आशंका-वांछानो दोष लागे छे. परभवे जइश त्यारे भोग भोगीश, एम आशंका रहे, माटे जावज्जीवाए ए पद कहेवू नही. एह वचन विझंस साधुए मान्युं नहीं. श्री दुबैलिका पुष्प मित्रने का के गोष्टमाहिल एवी प्ररुपणा करे छे. कर्म तथा पञ्चखाण संबंधी विपरीत प्ररुपणा सांभळीने आचार्ये कहयुं के-गोष्टमाहिल विपरित प्ररुपणा करे छे, त्यारे श्री संघने संदेह पडयो. आचार्य कहे छे ते खरं के गोंष्टमाहिल कहे छे ते खरं ? श्री संघे शासन देवी समरी अने सिमंधरस्वामी पासे मोकली, देवीए त्यां जइ श्री मंधरस्वामिने पूच्छयु सीमंधर
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