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१६६ मूकी दुईलिका पुष्प उपाश्रये आव्या. सर्व साधुओए अभ्युत्थान कर्यु. आचार्ये कडं, केम जुदा उपाश्रये उतर्या छ ? अत्रः रहो. गोष्ट माहिल आचार्यना उपाश्रयथी नीकळी पोते ज्यां: उतर्या हता त्यां गया. पृथक् उपाश्रये रही माणसोनां चित्त व्युग्राहित करवा लाग्या, पण कोइ तेनुं वचन अंगीकार करतुं नथी. एक दिवस दुर्बलिका पुष्पसूरि अर्थपौरुषी करे छे, सर्व साधुओए बोलाव्यो तोपण गोष्टमाहिल त्यां आवतो नथी. अर्थपौरुषि कर्या बाद विझांस नामनो शिष्य कहेवा लाग्यो, आठमा कर्म प्रवाद पूर्वने विषे कर्मनी व्याख्गा छे, त्यां जीव कर्मनो शी रीते बंध छे ? आचार्य कहे छे १ बद्ध २ स्पृष्ट ३ निकाचित भेदे करी आत्मा अने कर्मनो बंध छे. त्रण भेदनुं आचार्य प्रतिपादन कयु. नजीक उपाश्रयमां रहेनार गोष्टमाहिले प्रश्न अने उत्तर सांभळयो. त्यां रह्या छतां तेणे का, आई अमारा गुरु पासे अमे श्रवण कयु नथी. जो कर्म बंध, बद्ध, स्पष्ट अने निकाचित्त थाय, त्यारे आत्मानो मोक्ष थाय नहीं. त्यारे विजंस नामनो शिष्य कहे छे, त्यारे शी रीते कर्म बंध बद्ध, स्पृष्ट अने निकाचित. थाय छे ? गोष्ट माहिले कह्युयथा कंचुकः कंचुकिशरीरं स्पृशति तथा कर्म
आत्मप्रदेशान् स्पृशति न पुनः क्षीरनीरन्यायेन। ____जेम मनुष्य कंचुक पहेरे, अथवा पुरुष जामो पहेरे, तद्वद
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