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१६२ दार्थनी राशी छे, एक पुण्य अने एक पाप तेम रात्रि अने दिवस तेम आकाश अने पाताल तेमज जीव अने अजीव इत्यादिक बे पदार्थनी राशी छे, त्यारे रोहगुप्त बोल्यो, संसा. रमांत्रणनी राशि छे, काल त्रण छे, अतीत, अनागत, अने चर्तमान; तेमज स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल तेमज जीव, अजीव, अने नोजीव, इत्यादि वदन जीवाजीवनोजीवेति स्थापितवान् । त्यारे पोशाले कयुं नोजीव कोण ? त्यारे रोहगुप्ते कहयु नोजीव घिरोलीनी पंछडी टथा पछी हाले छे, तेने जीव पण न कहीए अजीव पण न कहीए, तेने तो नोजीव कहीए. पश्चात् परिव्राजके सात विद्या मूकी, त्यारे रोहगुप्ते तेनी घात करनारी प्रतिपक्षी सात विद्या मूकी, परिव्राजके गर्दभी विद्या मूकी ते रोहगुप्ते ओघावडे, करी जीती लीधी. अंते जयपताका वरी गाजते वाजते गुरुनी पासे आव्या गुरुए कह्यु, हे वत्स सारं कयु, के जे वादीने जीत्यो. किंतु जीव, अजीव अने नोजीव जे कडं ते उत्सूत्र भाषण कर्यु, तेथी राजानी सभामां जइ खमावो. पश्चात् अभिनिवेश मिथ्यात्वना उदये करी, गुरुनुं वचन तेणे मान्युं नहीं. गुरुए कह्यु, तुं शरमाइश नहीं, जा त्यां जइ मिथ्या दुष्कृत दे वारंवार गुरुए कयुं त्यारे खेदातुर थइ धृष्ट बनी कहेवा लाग्यो, राशि त्रण छे. एमां कोइ दोष नथी, त्यारे गुरु अने शिष्य बच्चे वाद थयो,गुरु शिष्य राज दरबारमा गया, राजा समक्ष शिष्यनी साथे वाद थयो, राजा समक्ष शिष्यनीसाथे वाद करवानो प्रारंभ कर्यो, वाद करतां छतां
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