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हे श्रावक ! ते मने \-आप्यु ? सार श्रावके का, हे भगवन् तमारा सिद्धांतनी अनुसारे संपूर्ण आयुं छे, छेल्लो अवयव आपे छते पूर्ण अवयवी आप्यो. जेम छेल्ला प्रदेशे जीव छे तेमू में सर्व अवयवी आप्यो छे. छेल्ला प्रदेशे जेम जीव तेम अंते अवयव सर्व अवयवी एम तमारा मतानुसारे में वहोराव्युछे. श्री वीर भगवान्ना सिद्धान्त अनुसारे में कंइ पण वहोराव्यु नधी. इत्यादि युक्तियोंथी मित्रश्री श्रावके तिष्यगुप्तने समजीव्यो अने तेणे मंत मूकी दीपो.
अथ तृतीय निन्हव-श्री वीर भगवान् पछी बसे चौद '२१४' वर्ष गये श्वेतांत्रिका नगरीमा पोलास उद्यानमा आषाढाचार्य पोताना शिष्योने आगाढयोग वहन करावता हृदय शूल रोगी रात्रिमा अकस्मात् मरण पाम्या. स्वर्गमा मेया, त्यां जइ उपयोग दीघो. स्नेहथी पूर्वना शरीरमा प्रवेश करीने पोताना शिष्योने आगाढयोगनी क्रिया पूर्ण करावी अन्य नवीन आचार्य संस्थापीने सर्व शिष्योने पोतानो वृत्तांत कही देव लोकमां पंधार्या, तेना शिष्यो तेनु स्वरुप देखी अव्यक्त मत अंगीकार कर्यो. देवता वा साधु शी रीते ओळखाय ? साधुना शरीरमां देवता पेठो होय माटे कोण जाणे ते साधु हशे के केम ? माटे साधुने साधु एम कहे, ते अवक्तव्य छ, एटले कहेवा योग्य नथी. कोइ कोइने वंदना व्यवहार पण करता नथी. सर्व व्यवहारनो लोप कर्यो; अपच्चरकाणी होय, तेने साधु करीने वांदीए तो मिथ्यात्व लागे अने मृषावाद
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