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यथाः एगे भंते जीवपएसे जीवेत्तिवत्तव्वं सिआजोयणठे समठे एवं दोजीवपएसे तिन्निसंखिजा असंखिजा वा जाव एग पएसेण वि अणतो जीवत्तिवत्तव्वं सिआणायणठे समढे एवं दोजीपएसे तिन्निसंखिजावा असंखिजावा तम्हा किसणे पडिपुन्ने लोगाण सपएस. तुल्लापएसे जीवत्ति-वत्तवं.
आत्माना सर्व प्रदेशो एक प्रदेश हीनपणाथी जीवव्यपदेशने पामता नथी, लोकाकाशना जेटला आत्माना सर्व प्रदेशा मळी जीव कहेवाय छे. तिष्यगुप्ते आत्माना छेल्ला प्रदेशयां जीव छ, एम स्वबुद्धिी नको कर्यु. तिष्य गुप्त आमल कंपा नगरीमा गयो, त्यां स्थायी मित्रश्री नामना श्रावक तेमने मिमंत्रण करी पोताना घेर लावी सर्व प्रकारनां भोजन तैयार करेलां हता, ते प्रत्येकमांथी एटले लाडुनो एक छेल्लो भाग, सेवा संधी हती तेमांथी एक सेव, चोखा रांध्या हता तेमाथी एक चोखो, घीमांथी एक घोविंदु, ए प्रमाणे सर्व भोजनमाथी एकेक प्रदेश आप्यो, अने श्रावके कयु के हे भगवन् ! आपने वहोराव्यु, हुं कृतार्थ थयो. साधु हसीने कहेवा लाग्यो
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