________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लोक.
प्रबलध्यानवज्रेण दुरितद्रुमसंक्षयं तथा कर्म यथा दत्ते न पुनर्भवसंभवं ॥१॥
प्रबल ध्यानरुप वज्र वडे पापरुप वृक्षने एवी रीते क्षय करुंके ते फरीथी उगी शके नहीं, ध्यानरुप अग्निथी कर्मरुप काष्टने बाळीने भस्म करुंके पुनः पुनः संसारमा परिभ्रमण कर, पडे नहीं, एवी रीते पोतानुं आत्म स्परुप ओळखी परमात्मपद प्राप्ति अर्थे ध्यान करे तेने ज्ञानी कहीए. नैगम, संग्रह, व्यवहार, रूजुसूत्र, शब्दनय, समभिरूढ, एवंभूत; ए सातनय, तथा नामनिक्षेपो, स्थापना, द्रव्य, अने भाव ए चार निक्षेपाना ज्ञाता ज्ञानी होय स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, आदि सप्तभंगी सर्व पदार्थो उपर लगाडी जाणे, समकित मोहनी, मिश्र मोहनी, मिथ्यात्व मोहनी, तथा कषाय क्षयथी जेने शुद्ध तत्त्व प्रगट थयुं छे, यथातथ्य श्रुत ज्ञानवडे करी सर्व पदार्थो. नुं स्वरुप जाणे छे. चार निक्षेपाथी नवतत्त्वने जे जाणे छे, गुरु परंपराए श्रत ज्ञान संबंधी चालतो आवेलो अनुभव ते ना जाणनार, एवा ज्ञानी गुरु, भवसमुद्रने तरवा माटे झाझ समान छे. मोक्षनी प्राप्ति माटे ज्ञान, अने क्रिया बेर्नु अवलंबन ज्ञानी करे छे एकान्ते ज्ञान या एकान्ते क्रियानो निषेध ज्ञानी करतो नथी, जन मन रंजन अर्थे क्रिया करतो नथी. मोक्षनी प्राप्ति माटे संवरने भजनारी क्रिया करी सदा आत्मभावे
For Private And Personal Use Only