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होतो हुँ तमारी पासे सदाकाल वसुं, जरा मात्र खसुं नहीं. . आत्मपति-मारी व्हाली शुद्ध चेतना ! तारां वचनो मारा हृदयने भेदी नांखे छे, हुं कंइ लबाड माणस नथी. हूं उत्तम कुळनो छु, सिद्धनो भाइ छ, हवे बाह्य धन धान्य स्त्री पुत्र आदि उपरथी ममता उतारी अभ्यंतर आत्मिक धननी प्राप्ति माटे प्रयत्न करीश, अने मारुं धन अनादिकाळथी तिराभावे रहछे, तेने आविर्भावे करीश. अने आत्मिक रूद्धि प्रगटभावे करीश, हे शुद्ध चेतना, आपणे अनंत सुखनी लहरमां स्वकाल निर्गमन करीशं, संसारिक पदार्थों उपरथी में प्रवृत्ति थती हवे त्यागी, हवे में आत्मगुणमा प्रवृत्ति करी छे, पौद्गलिक धन आत्मिकथन आगळ शा हिसाबमां छे, अरे आटलो काल काचना कटकाने मणि धारी हुँ मूर्ख बन्यो. हवे केम जाणी जोइ पौद्गलिक सुखनी भ्रांतिथी संसारमा प्रवृ. त्ति करुं अलवत नहीं करूं, मन, वचन, अने कायाथी न्यारं मारु आत्म धन छ, तो ते त्रण योगने केम धन तरीके मार्नु ? अलबत हवे मानीश नहीं, आवां आत्मपतिनां वचनो सांभळी. शुद्ध चेतनास्त्री अत्यंत प्रमोद पामी, अने स्वपति संगे अहर्निश रहेवा लागी. आत्मपति ए पण ज्ञानक्रियाए करी कर्म कलंक रहीत थइ घनघाती आदि कर्म खपावी अनंत चतुष्टयनी प्रा. प्ति करी, शुद्ध चेतनानी संगे मोक्ष स्थानमा जइ वंश्यो. इत्यादि ध्यान कारणीभूत श्री जिनप्रतिमा छ, तेना योगे सालंबन ध्यानद्वारा निरालंबन ध्यान योगे शाश्वत पद संगी थवाय छे,
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