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चोळ थइ जाय छे ? अने मनमा आहह दोहट्ट चितवे छे. तारी शी गति थशे ? तीर्थकर भगवान्ना आचरणमां अने तारा आचरणमां केटलो बधो फेर छे ? श्री तीर्थंकर भगवाने सोनुं रुपुं, वगेरेने असार जाणी तेनो त्याग कर्यो, हे लालचीया पामर जीव ! तुं भगवान्थी उलटो चाली सोनू, रुघु, वगेरेने मारुं मारुं माने छे, अने तेनी प्राप्ति अर्थे अनेक प्रकारनां कुकर्म करे छे, तेथी शुं परभवमां दुःखी नहीं थवानो ? अलबत् थवानो. श्री तीर्थकर भगवाने स्त्रीने असार जाणी तेनो त्याग कर्यो, अने स्त्री संबंधी भोगोनी अभिभाषा जरा मात्र पण करी नहीं. देवताओनी स्त्री संबंधी पण अभिलाषा करी नहीं, स्त्रीन शरीर सात धातुथी बनेलं जाणी, तथा तेना शरीरमा सुखनी भ्रांति जाणी तेनो त्याग कर्यो. स्त्री बे प्रकारनी छे. १ द्रव्य स्त्री. २ भाव स्त्री. देवतानी स्त्री, मनुष्यनी स्त्री अने तिर्यचनी स्त्री आ त्रण प्रकारनी स्त्री द्रव्य स्त्री जाणवी. आत्मानी परवस्तु संबंधी अभिलाषा, पौद्गलिक वस्तुनी ममता तेनो उपभोग, तेथी उत्पन्न थयेली आत्मानी राग द्वेष मय अशुद्ध परिणति तेने भाव स्त्री कहे छे. बहिरामियो, सदा अशुद्ध परिणतिमां रम्या करे छे, तेमने दरेक संसारना पदार्थोनी अभिलाषा मनमा रहे छे, तेमने परवस्तुमां सदाकाल राचq माचवू थाय छे. द्रव्य स्वीना त्यागथी भाव स्त्री त्यागी एम एकांते कही शकाय नही. भाव स्वीना त्यागथी द्रव्यस्त्रीनो त्यागः अवश्य थाय छे. श्री भगवाने आ प्रकारनी स्त्रीनो
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