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बार गुणें करी विराजमान अरिहंत भगवान् छे, चार निक्षेपें श्री अरिहंत भगवान् जणवा, नाम अरिहंत, स्थापना अरिहंत, द्रव्य अरिहंत, अने भावअरिहंत, अरिहंत एवं नाम ते नाम अरिहंत, अरिहंत भगवान्नी स्थापना स्थापवी ते स्थापना अरिहंत, वीश स्थानक मध्येथी गमे ते स्थानक आराधी तीर्थकर पण थवानां दळियां उपाया, त्यारथी द्रव्य अरिहंत जाणवा, केवळ ज्ञाननी प्राप्ति करी समवसरणने विष बेसे, देशना दे, त्यारे भाव अरिहंत जाणवा. यतः
नामजिणा जिणनामा । ठवणजिणा पुणजिणंदपडिमाओ॥ दवजिणा जिणजीवा।
भावजिणा समवसरणथ्था ॥१॥ नाम जिन, स्थापना, जिन, द्रव्यजिन, तथा भावजिन ए चार निक्षेपा अरिहंतनाज जाणवा.
प्रश्न-चार निक्षेपामांथी भावाजिननो निक्षेपो साचो छे. माटे ते मानवो बीजा कम मनाय !
उत्तर-समाधान, चारे निक्षेपा सत्य छ, स्वस्वरुपे चारे निक्षेपा सत्य छे, असत्य कही शकाय नही.
जिज्ञासु-स्थापना तरीके तीर्थंकरनी मूर्ति बनाववामा आवे छे ते बोलती नथी चालती नथी छतां तेने मानवाथी शो लाभ थाय ?
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