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उपभोगी जाणवा. एटले छता पर्यायरुप गुण वारंवार फरीफरीने एना ए भोगव्यामां आवे माटे. तथा सिद्धना सामर्थ्य पर्याय समय समये नवा नवा ज्ञेयनी वर्तनाए पलटाय छे ते माटे समय समय नवु नवु अनंतुं सुख भोगवे छे.
सिद्धने ज्ञान दर्शन चारित्र अने वीर्य ए चार गुण तथा अव्याबाघ, अमूर्त्त, अनवगाहक, ए त्रण, पर्याय नित्य छे. ते माटे ए नित्यस्वभाव कहीए, अने एक अगुरुलघु पर्याय सिद्ध भगवान्ने सर्व गुणमां उपजवा विणसवारुप हानि वृद्धि करे छे ते माटे सिद्धनो अनित्य स्वभाव पण जाणवो. द्रव्यास्तिक नये करी सिद्धनो नित्य स्वभाव जाणवो, अने पर्यायास्तिक नये करी सिद्धनो अनित्य स्वभाव जाणवो. स्वज्ञानादिक गुणना कर्ता तथा भोक्ता सिद्ध छे, पौद्गलिक वस्तुना की तथा भोक्ता सिद्ध नथी. जे स्वभाव पलटे छे तेने भव्यस्वभाव कहे छे. अने जे स्वभाव पटलतो नथी तेने अभव्यस्वभाव कहे छे. आबे प्रकारना स्वभाव सिद्धमा छे, सिद्ध भगवान्ने ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि अनंतगुण प्रगट्या छे. तेनो कोइ काले नाश थवानो नथी, एटले ते कोइ काले पलटाशे नहीं, ते माटे तेनी अपेक्षाए सिद्धमां अभव्यस्वभाव जाणवो. सिद्धमां एक अगुरु लघु पर्याये करी अनंतगुणमां हानि वृद्धिरुप समय समय व्ययोत्पाद थाय छे, तेनी अपेक्षाए सिद्धमा भव्य स्वभाव जाणवो. ग्राहक अने अग्राहक स्वभावे करी युक्त सिद्ध भगवान छे, सिद्ध परमात्मा शुक्ल ध्यानानिए करी सर्व कर्म बाळी
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