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१०४ स्वसमयमां अस्तित रखं छे, तेज समयमां परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, परभावथी परद्रव्यर्नु नास्तिख रयुं छे. एक समयमां ते वे धर्मर्नु युगपत् प्रतिपादन करतुं असमर्थ छे. युगपत् स्वरुप कथन करवामां, आस्तित्व, नास्तित्वनुं एक समयमां आप ग्रहण वचनथी थाय नहीं. माटे स्याद् अस्त्येव स्याद् नास्त्येिव युगपत् अवक्तव्यम् नामनो सातमो भांगो जाणदो.
नित्यानित्यादिकनी सप्तभंगीथी सिद्धन स्वरुप कथन करे छे. स्याद् नित्यं, स्यात् अनित्यं, स्यात् नित्यानित्यं, स्याद् अवक्तव्यम् , स्याद नित्यं अवक्तव्यम्, स्याद् अनित्यं अक्क्तव्यम् , स्याद् नित्यानित्यं युगपत् अवक्तव्यम्. ।।
१ स्यात्-अनेकान्तपणे सर्व अपेक्षाए नित्य, शाश्वत पण वर्ते छे तेने स्यात् नित्य भांगो कहिए, श्री सिद्ध भमवानने ज्ञानगुणना छता पर्याय अनंता, दर्शन गुणना छता पर्याय अनंता, चारित्र गुणना छता पर्याय अनंता, एम अनंता छता पयोय अनंता एम अनंता छता पर्याय ते सिद्धने विषे सदाकाल शाश्वता नित्यपणे वर्ते छे माटे स्यात् नित्य भांगो अथम जाणवो.
२ श्री सिद्ध परमात्माने अनंता छता पर्याय प्रगटया छे, ते एकेक पर्यायने विषे अनंता सामर्थ्य पर्याय रुप ज्ञेयनी वर्तना समय समय थइ रही छे. एटले अभिनव पर्यायर्नु उपज, अने पूर्व पर्यायन विणसवू थाय छे, माटे ए सिद्धमा आनित्यपणं आणq तेथी स्यात् अनित्य रुप बीजो भांगो कहो.
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