SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जइ न आहिलसह दालिद्द दोहग्गयं तुम्ह अहिलसह जइ लच्छिसोहग्गय । भवह जइ भीअ जइ सिवसुहासत्तया हवइ एयस्स जिणदुगइ तो भत्तया ॥७॥ एय संवच्छरिय पक्खियचउमासिए अजिय संतित्थय भणइ जो निसुणइ । कहइ कांववीरगणि भविअजण अग्गए असुह तसु जाइ सुहरण्यलसंपज्जए ॥८॥ श्री यशोविजयोपाध्याय स्मृतिर्निमित जन शान्ता, महिमाठया वजित शान्ति नामामौ । नवि कर्मा कुर्वेऽहं द्वितीय षोडशजिनौ समकम् ॥१॥ पुष्पा द्यैर्म हितत्वं परभाग पराग भाग्भवेन्मयः । वृषभा भूत युवां श्री धर्मरथं श्रयति शिवगामी ॥२॥ प्रिययुवया पुरुषेण प्राप्यन्ते शान्ति कान्त धृतिमतय । प्रतिपन्न प्रभुतुभ्यं जनाय भद्रं भवेन्नूनम् ॥३॥ नित्वं मनोधृतयुवन्नुर्नाऽन्यो जगति धन्यमृद्धन्यः । निजवित्तव्यय विषयी कृत तव ऋद्धि प्रवद्वैत ॥४॥ ध्यात श्री विमलाचल तीर्थ स्थित युवयि भव्यता नियमात् । हे स्वस्व बोधक युवां हृदि वसतं मे जिनाधिपती ॥५॥ नुतौ युवामजित शान्ति जिनौ मयेति, युष्मत्पद द्विवचनान्य पदं कतोत्क्या । श्री नन्दिषेण गणि संस्तुत पाद पनौ, देयास्त मस्त विपदं सुख जम्पदं मे ॥६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008512
Book TitleAjitnath Vandanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year1976
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy