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श्रीवीरगणिकृत लघु अजितशान्ति स्तवन गब्भ अवयारसोहम्मसुरसामिओ जणणिजेय संथुणइ भत्तिभरभाविओ। तिजिण इक्खागकुरुवंस भूसणधरा अजियसंति य नंदंतु मंगलकरा ॥१॥ जम्मकालंमि जे असुरसुरभासुरे न्हविय बत्तीसइंदेहिं सुरगिरि सिरे । खयरनर अमर आणंद वद्धलया जयउ जगि अजीयसंति य भट्टारया ॥२॥ खवियरिउवग्गवरज्जसुहमाणिउं पवरदाणेण जगसयलसंमाणिउ जेहि मुक्वंकरी दीक्खकखीकया ताहि धुणि अजियसंति यपयपंकया ॥३॥ घोरतवचरणउवसग्गुअहियासि दुज्जए घाइकम्माइं निन्नासिउं । जेहिं नाणं समुप्पाडियं विमलयं दुइयसोलसमजिण तजण मह सुविणयं ॥४॥ पवरदेसणयतिहुयणविपडिबोहयं भवोवग्गाहि कम्माइं मसभूरिअं । पवरसुह परमनिव्वाणपुरि ले गया दृढ ते नमह जिण अजिअसंति सया ॥५।। कुविअरिउवग्ग हरि सरह गय जोयणी भूय वेयाल अहि रक्खसी डायणी । तासु उवसग्ग कीरेइ नासेसयं हियइ जो एहु समरेइ जिणजुअलयं ॥६॥
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