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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (१५) अजितशान्तिस्तवः ( महामन्त्रगर्भितः ) ।। १ ।। · सिरिरिसह-अजिअ - संभव अभिनंदन - समुइ सय पह-सुपासा । चंद पह- सुविहि-सीअल-सिजंस- वसुपुज्ज - विमल-णंता धम-संनि कुंथु अर-मल्लि सुवय नमि- पास- वीर तेवीसं जिण पुंडरिआ पुंडरि अपव्व एजत्थ समुसरिआ ||२|| वासासु विहिअवासा सुविहिअसितुंजए अ सित्तुं जे । तहि रिट्ठनेमिणो रिट्ठनेमिणो वयण जे उ ॥३॥ देविदथुआ णि वरविज्जाळं दिसेणगणि वइणा । समय वरमंतसचमकीत्तिणा अजिय संति जिणा || ४ || तेहि पे अजिअसंती गाणि - रागाइ रिउअजिअसंती | विभत उज्जियसंती संपाइअतिजयजिअसं ती ॥५॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असुरविंद सुरिंदनरिंद चंद नार्गिद बंदि वंदेहिं । बंदिअपयारविंद चंद जिअसंति - जिणच दे |६|| अजिआजओ तिजईसो तिजईसन हिओ ४ दुज्जयनिज्जिअतिजगंतरा रिजाएण । जयउ जिणनाहो ||७|| सत्ताणं सत्ताणं संताण कुइ संतिअ संतिकय उवसंती - संतिकय पणवत्ति नमो भगवओ अरिओ जिअस्स सिज्जउ मे । संतिस्मय स भयवइ जं महइ सयामहाविज्जा || ९॥ अजिअ सरई अजिए रिकहि अपराजिए जयम्मि सया । माहपराजिए अ णिहए असंवाहाब लेहिंपि ॥१०॥ संतसंताणं । उवसंती ॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008512
Book TitleAjitnath Vandanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year1976
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
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