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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. आ. श्रीमत् विजयलब्धि सूरीश्वर प्रणमत (द्रुतविलम्बिल) अजितनाथ ! तयाधि सरोरुहं विविधशक्तिमरन्दकरम्बितम् । नरसुरासुरकिन्नरसेषितं मम मनोऽलिरहनिशमिच्छति ॥१॥ जिनवरा जनतामधनाशना मम हृदि प्रतिवासित शासमाः । सकलतत्त्वविकासनविश्रुता ददतुश्शश्वतसौख्यमहोदयम् ॥२॥ विमलकारकबुद्धि महोदयं विनतभावुकवृन्द महोदयम् । यतिवरैर्हतरोधामुखैस्सा हृदि विभावितमस्त्म भयाय नः ॥३॥ जिनपदाब्जरता सुभगाऽजिता भुवनभीतिगणोपशमे हिता । अरिजानैरजिता जनयन्दिता जयतु तीर्थपशासनदेवसा ॥४॥ अजितनाथ ! तवाऽध्रिसरोज कं, हृदयसमनि चारु विचिन्तये। स्व जन्मोत्सव इन्द्रगणस्तुतं, कनक भूधरसानु विराजितम् ॥१॥ जिनगण विमदं स्तुति मानवाः, शमित संसृति भूत महापदम् । अमरनाथगणाः स्तुति मन्वहं, विदधतेऽस्य महोत्सव धारिण; ॥२॥ प्रदिश मेऽन्तिमधाम निवासक, त्रिभुवनाऽर्ति निवारक निर्मले । जिनमतश्रुत ! सर्व सुखाऽऽस्पेदे, विततमोक्ष यथेष्ट सहायद ॥३॥ सितगरुत्मदधिष्टित विग्रहा, विशद दीप्ति पविं दधतीश्वरी । वितरतु ज्ञतरुगू भुवि मानसी, भवभयक्षय कारक ! शंसद ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008512
Book TitleAjitnath Vandanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year1976
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
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