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卐 हरियाली
साधु सरोवर झीलतारे :
जैन साधुओं के स्नान वजित है फिर भी मुनि समता जल से भरे उपशम सरोवर में स्नान करते हैं।
स० नाके रूप निहालता रे :
जिस मुनि को तपस्या द्वारा संभिन्न श्रोतादिक लब्धि उत्पन्न हो गई हो, वह नेत्र बंद कर नाक से नेत्र का काम ले सकता है, रूप आदि देख सकता है।
स० लोचनथी रस जाणता रे :
नेत्र से रसेन्द्रिय का काम ले सकता है । नेत्र से खट्टे मीठे रस का पता लगा सकता है। एक इन्द्रिय से पाँचों इन्द्रियों का काम ले सकता है । पुनः पाँचों इन्द्रियों को ज्ञान होता है ।
स० मुनिवर नारी सं रमे रे. गा. ॥१॥:
विरती रूपी नारी के साथ मुनि निरंतर क्रीडा करते हैं । स० नारी हींचोले कंथ ने रे :
समता सुन्दरी नारी अपने आत्मा रूपि पति को ध्यान रूपी झूले पर बिठा कर झुलाती है । स० कंथ घणा एक नारी ने रे :
तृष्णा रूपी स्त्री ने संसार के सब जीवों को अपना पति बना रखा है, सबसे शादी की है।
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