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( ५६ ) ढांकणीए कुमारज घडीओ:
____ माया रूपी ढक्कन ने चतुर आत्मा को भी कुम्हार बना दिया । लगडा उपर गर्दभ चढीओ :
कुम्हार के घर में मन रूपी गधा है, वह राग द्वेष रूपी लक्कड़ पर चढ़ गया है। प्रांधरो दर्पण मां मुख नीरखे:
___ अज्ञान से अंधा बना आत्माध्यान रूपी दर्पण में अपना मुंह देखता है अर्थात् अतीत लोक समाधि पर चढे किंतु मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। मांकडु बेठु नाणुं परखे ॥६॥चे०॥ :
जैन शासन प्राप्त किया तो भी क्या सिद्ध हुआ ? चंचल चित्त से अति विषयासक्त होकर नव तत्त्व आदि रुपयों की परीक्षा कर रहा है। अथात् रुपया तो खरा है किंतु व्रतधारी चंचल बंदर के समान है, यह आश्चर्य है। सुके सरोवर हंस ते माले:
विषयी आत्मा ज्ञान उपशम जल रहित संसार में मृगतृष्णा, ध्यान मन, स्त्री सुख रूपी सरोवर में जीव रूपी हँस को देख रहा है । अर्थात व्रतधारी मुनि चारित्र सरोवर से भ्रष्ट होकर संसार में विषय रूपी सूखे सरोवर में आसक्त होता है । पर्वत उडी गगने चाले:
ऐसे भ्रष्ट चरित्र वाले पर्वत के समान संयम पर रहते हुए भी नीचे गिरते हैं, जब कि वायुकाय एकन्द्री भी आकाश में उड़ते हैं।
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