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( ५१ )
परकारण आप मुख छेदावे
मूरख सरसो गोठ न भावे ॥१॥ प्रादी अखर वीण जग सह मीठो
मध्य अखर वीण पंखी मेलो सो सज्जन मुज मुके वहेलो ॥२॥
दु हो २ दधी सुतके नीचे बसे
सो मांगत व्रज नायका कहान करी बगशीस ॥४॥
अंक जनावर अजब जनावर
चलते चलते थक्को
पाली लेइने कारण लाग्यो
फेर चलण लागो ॥१॥
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