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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४८ ) उपरोक्त समस्या का उत्तर 'लेख' है, ऐसा कर्ता ने श्रीपाल चरित्र में कहा हैं । 'लेख' या 'पत्र' की उत्पत्ति लेखनी और स्याही दो स्त्री वाचक शब्दों से होती है । इतना ही नहीं 'कागज' या 'पत्र' इन दो पुरुष वाचक शब्दों का भी इसमें योगदान है । इस प्रकार 'लेख' दो स्त्रियों और दो पुरुषों के योग से उत्पन्न संसान है। यहाँ 'समुद्र' का अर्थ 'सागर' नहीं है। यहाँ 'मुद्रया सहितः समुद्रः' मुद्रा सहित समुद्र का अर्थ है । इसी प्रकार 'साक्षर' का अर्थ 'विद्वान' न कर 'अक्षर' सहित' अर्थ करने से समस्या की कटुता दूर हो जाती है। 'सुभाषित रत्न भंडारागार' में तो उपर्युक्त समस्या इस स्वरुप में दिखाई नहीं देती । क्या इस समस्या की रचना ज्ञानविमलसूरि ने ने स्वंय की है ? या इनके पूर्ववर्ती किसी कवि की रचना को इन्होनें यहां स्थान दिया है ? २. इस अंतिम पंक्ति में संस्कृत समस्या के संयोजक का नाम और साथ ही साथ मैंने अपना नाम भी प्रदर्शित कर दिया है । For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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