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( ४४ ) हिंदी शब्दार्थ :
शील स्वभाव रूपी मेरा घाघरा शोभा देता है, जीवदया मेरी कांचली (चोली) है । मैंने सम्यक्त्व की बारीक ओढणी ओढ़ रखी है । उसे मैंने शंका से गंदा नहीं किया है ॥२॥ निश्चय ने व्यवहार तरणा बे, पाये नेउर खलके । बेउविध धर्म साधु श्रावकनो, कानें अकोटा जलके रे बाई
। सा० ॥ ३ ॥ हिंदी शब्दार्थ :
निश्चय और व्यवहार के दो पाँवों में जंपूर खनक रहे है, साधु और श्रावक के दो प्रकार के धर्म रूपी मेरे दोनों कानों में कुडल झलक रहे हैं ॥३॥ तपतणा बे बेरखा बांहे, तगत में ते जे सारा । ज्ञान परमत तणुं ते अर्चा, माहे परिणाम नी धारा रे बाई
॥सा० ॥ ४॥ हिंदी शब्दार्थ :
मेरे तप रूपी दो बाहें हैं, जो बाजूबंद के तेज से चमक रही हैं। ज्ञान रूपी हृदय पर परिणाम की धारा रूपी हार पड़ा है ॥४॥ राग सिंदुरनुं की, टीखें, शीयलनो चांडलो सोहे।। भावनो हार हैयामां लहे के, दान ना कांकण सो हे रे बाई
॥ सा० ॥ ५॥ हिंदी शब्दार्थ :
__राग रूपी सिंदूर की बिन्दी लगी हैं, जिस पर शील का टीका लगा है । हृदय पर भावना रूपी हार लहक रहा है और हाथो में दान रूपी कंगन शोभित हैं ॥५॥
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