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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४३ ) * आत्मोपदेश सज्झाय ( कृत :- श्री विनयतम सूरीजी ) कर्ता :- आत्मोपदेश सज्झाय (स्वाध्याय) के कर्ता विनयप्रभ सरि हैं, किंतु वे किसके शिष्य हैं तथा यह कृति कब लिखी गई, इसका सज्झाय में उल्लेख नहीं है। विनयप्रभ नामक कुछ मुनि हुए हैं, जैसे कि (१)वि.सं.१४१२ में गौतम स्वामी का रास के रचयिता,(२) वि.सं. १५०१ में षष्ठिशतक पर टीका लिखने वाले तपोरत्न के विद्यागुरु, (३) वि. सं. १७८४ में नेमि भक्तामर के रचयिता पौर्णमिक गच्छ के भावप्रभसूरि के दादागुरु । इनमें से किसने उपरोक्त सज्झाय की रचना की है ? उपरोक्त व्यक्तियों में से ही किसी एक ने इसकी रचना की है या अन्य किसी विनयप्रभसूरि ने। इसका निर्णय करने का साधन मेरे पास नहीं हैं। (गोपीपुरा, सूरत २८-४-४६) सासरिये अम जइये रे भाई, सासरिये अम जइये। जिन धर्म ते सासरूं कहीयें, जिनवर देव ते ससरो॥ जिन आणा सासु रहीयाली, तेना कह्यामां विचरोरे बाई ।सा.।१। अरा ने परां कयांहि न भमीय, ममतां जस नवि लहीये रे भई ॥सा०॥टेर।। हिंदी शब्दार्थ : मैं ससुराल जाऊँगी, भाई मैं ससुराल जाऊँगो। जिनधर्म मेरा ससुगल है । जिनवर देव मेरे स्वसुर है। जिन आक्षा मेरी सुन्दर सास है, मैं उसके कहे अनुसार काम करती हुँ इधर-उधर भटकना व्यर्थ है, भटकने से यश प्राप्त नहीं होगा ॥१॥ शियल स्वभाव सोहे घाघरियो, जीवदया कांचलडी। समकित प्रोढणी ओकी रे जोगी, शंका में से नखरडी रे बाई ॥सा० ॥२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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