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( ३५ )
एक नारी अति सामली, पाणी माहे वसंत । तो तुम दरसण देखवा, अली जो प्रति हे करत ॥२८॥ (प्रांखें) कागल वरणे हे सखी, देख्यो एक पुरुष । बालणहारा को नही, रोवणवाला लख ॥२६॥ (कोवा) नीली डाली धोला फूल, कही देउ । बताइ देउ जाय रे, मूरख जाए ॥३०॥ (आयफल)
"राज्य क्रान्तियों में अनेक स्वर्ण मुकुट भ - लुण्ठित हुए हैं और हो रहे है। परन्तु मुनिपुगवों के दिव्य मस्तक पर शोभित संघम रूपी स्वर्गामुकुट शाश्वत है।"
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