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弱弱 節節
हरियाली
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[ कुछ समस्याओं का संग्रह ]
( संग्राहक : मुनिराज श्री ज्ञान विजयजी )
प्राचीन ऋषि मुनि अपने अवकाश के समय लोक भाषा में ऐसी अनेक रचनाएँ करते थे जिनसे ज्ञान प्राप्ति के साथ साथ लोगों का मनोरंजन भी हो । यहाँ प्रस्तुत हरियाली भी एक ऐसी ही कृति है । ऐसी कृतियों ने लोगों का मनोरंजन करने के साथ साथ उस भाषा की भी बहुत सुन्दर सेवा को है । ऐसी कृतिनों को प्रत्येक भाषा की संपत्ति के रूप में गिना जाना चाहिये ।
निम्न कृति और ऐसी ही एक अन्य हरियाली मुझे प्राचीन हस्तलिखित पत्रों में देखने को मिली, मैंने तुरंत उनकी नकल कर ली। उनमें से एक को मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हुँ । यह किसके द्वारा रची गई है। और इसका रचना काल क्या है, इसका कहीं उल्लेख नहीं मिल पाया है । फिर भी उसकी लिपि को देखकर ऐसा लगता है कि ये अवश्य प्राचीन हो होंगी ।
इसकी भाषा अधिकांश में गुजराती है । पाठकों की सरलता के लिये रचनाकार ने प्रत्येक पद्य की समाप्ति पर समस्या का उत्तर भी दिया है । किसी किसी स्थान पर लेखक का आशय स्पष्ट समझ में नहीं आता, फिर भी कविता सरल और रुचि कर तो है ही ।
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