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________________ www.kobatirth.org ( 2 ) "मैं स्वयं न तो विवाहित हूँ और न ही बाल- कुंवारी ही हूँ, फिर भी मेरे संकल्प - विकल्प नामक दो पुत्र हैं । इस संसार में मैंने किसी को नहीं छोड़ा है, फिर भी मैं तो बालकुमारी मानी जाती हूँ, क्यों कि मेरा पेट किसी दिन भरता ही नहीं। मैं तो देवताओं को भी नहीं छोड़ती । देवताओं को खाने-पीने की कोई चिंता नहीं, बाल बच्चों के शादी विवाह की कोई चिंता नही । न आभूषरण बनवाने पड़ते हैं न मकान क्योंकि उनके रहने के शाश्वत विमान होते हैं, फिर भी उनमें इतनी अधिक तृष्णा होती है कि अपने से अधिक ऋद्धि वाले देव को देखकर जल जाते है ।" आनन्दघनजी कहते है कि तृष्णा बहुत भयंकर है । Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अब 'भवितव्यता' पर विचार करें । कर्म परिणाम राजा है, जिसके काल परिणति महाराणी है । कर्म परिणाम महाराजा को नाटक देखेने का, खेल तमाशे देखने का बहुत शौक है । वे लोगों को अनेक पात्रों के वेष देकर उनसे अनेक नाटक करवाते रहते हैं । किंतु संपूर्ण राज्य तंत्र काल परिणति महाराणी ही चलाती हैं । राजा से भी वह महाराणी अधिक प्रभावशाली है । किंतु इस महाराणी को संसार में बांझ के रुप में घोषित किया गया है । एक बार महाराणी को पुत्र प्राप्ति की इच्छा हुई । फलस्वरुप सुन्दर स्वप्न की पूर्व सूचनानुसार उसे सुमति नामक पुत्र हुआ। किंतु उस पुत्र को कहीं किसी की नजर न लग जाये इस हेतू मंत्रियों ने रानी को बांझ ही घोषित किया। बांझ की लोक मान्यता से घबरा कर महादेवी ने पुत्र प्राप्ति की फिर इच्छा की । राजा ने उसकी इच्छा को स्वीकार किया और कहा कि "तुझे पुत्र होगा ।" यह दृश्य देखकर राजा-रानी की पुत्र वधु अशुद्धचेतना (भवितव्यता) नेकहा कि 'मेरा ससुर तो बहुत भोला भाला है । मेरी सास को अभी तक लाखों, करोड़ों, अरबों पुत्र हो चुके हैं, फिर भी वह अपने को अपुत्री - बांझ मानती है और पुत्र जन्म की इच्छा करती है, अत: उस सास को बालकुमारी ही मानना पड़ता है । इसी से कहा कि : For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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