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* निवेदन-* •पन्यास प्रवर श्री धरणेन्द्रसागर जी महाराज साहब ने अपनी पूर्व में सम्पादित पुस्तक “योग-शास्त्र" में भी मुझे सेवा करने का अवसर दिया उसके लिये मैं महाराज श्री का परम आभारी हूँ। इसी कड़ो में महाराज श्री द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक "आध्यात्मिक हरियाली" को सुव्यवस्थित रूप से क्रमबद्ध करके इसे प्रकाशित कराने का कार्य भी मुझे सुपुर्द किया जो मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है।
महाराज श्री ने प्रस्तुत पुस्तक का संकलन विभिन्न गुजराती भाषा में प्रकाशित पुस्तकों व लेखों से किया जिसका हिन्दी में अनुवाद करवा कर प्रकाशित किया गया है। मेरी समझ में यह हिन्दी भाषा में इस तरह की आध्यात्मिक रहस्य की प्रथम पुस्तक है। इस पुस्तक में महाराज श्री ने गहन व गूढ़ भाषा का भावार्थ आध्यात्मिक दृष्टि से समझाने का पूर्ण प्रयास किया है। इस तरह की भाषा में वास्तविक अर्थ कुछ और ही निकलता है व पढ़ने पर पाठक को अर्थ कुछ और ही समझ में आता है। इस तरह की भाषा को महाराज श्री की इस पुस्तक के जरिये आप सभी तक पहुंचाने का प्रयास किया है।
● प्रस्तुत पुस्तक में मेरे द्वारा हर संभव प्रयास करके अपनी बोलचाल की भाषा प्रत्येक पद का हिन्दी भावार्थ व अनुवाद के साथ प्रकाशित कराने का प्रयास किया है। और महाराज श्री द्वारा इस प्रकार की एक गम्भीर एवम् महत्वपूर्ण पुस्तक समाज के लिए प्रस्तुत की है जो साहित्य के क्षेत्र में एक विशेष उल्लेखनीय योगदान है। भविष्य में महाराज श्री इसी तरह से और भी हमारे लिए जीवनोपयोगी पुस्तकें सम्पादित करके हमारे जीवन में मार्ग दर्शन प्रदान करते रहें। यही हमारी महाराज श्री से मंगलकामना है।
विजयकुमार मोहणोत
एडवोकेट (राजस्थान उच्च न्यायालय)
बाईजी का तालाब, दिनांक : 29-2-88
जोधपुर (राज)
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