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करो तो अमो तेने छपावी प्रसिद्ध करीए' महाराजश्रीए टीका पूर्ण करी अने कपडवणननी शेठ मीठाभाइ कल्याणचंदनी पेढीए जामनगर-भास्करोदय प्रेसमां तेनुं मुद्रण करावधानो आरम्भ कर्यो.
सं. १९९५ मां महाराजश्री मुरत पधार्या ने चतुर्मास दरम्यान शासनप्रभावनाना अनेक धार्मिक कार्यो थया, तेमां आ'श्री जैन साहित्य वर्धक सभा' नी स्थापना पण थइ. अमोए आ ग्रन्थ आ सभा तरफथी प्रकट करवानी महाराजश्रीने विनति कर) ने शेठ मीठाभाइ कल्याणचंदनी पेढी पासेयो ग्रन्थ मांगी लीधो. पेढीए पण रु. २०० नी मदद आपवा साथे आ ग्रन्थ प्रसिद्ध करवा अमोने आप्यो ते माटे अमो तेमनो आभार मानीए छीए.
विद्वानोने आग्रह सह विनवीए छीए के कविरत्न-शास्त्रविशारद विद्वद्वर्य-आचार्य महाराज श्रीविजयामृतम्यूरिजी महा. राजश्रीए घणाज परिश्रमे तैयार करेल आ 'सरणी' टीका युक्त संस्कृत साहित्यना परमकोदिना अद्वितीय ग्रन्धरत्ननु वाचनविलोकन करी पोतानी विद्वत्ताने समृद्ध बनावे; वधु न बने तो आ ग्रन्थरत्नने सावरणीथी पोतानी पासे राखी पोते शोभे ने पोताना भंडारने शोभावे, ___ आवा विशिष्ट ग्रन्थो साची राखवा ने तेनो प्रचार करवो ए पण जीवनतुं एक अमूल्य कर्तव्य है. सहृदयो हृदयथी आ महाकाव्यने सत्कारे ! एज इच्छा साथे विरमोए छोए
अमे केशरीचंद हीराचंद अवेरी नेमचंद मोतिचंद अवेरी
ओ. सेक्रेटरी श्री जैन साहित्य वर्धक सभा--सुरत.