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चार्य श्रीविजयदेवमूरिजी महाराजना चरित्ररुपे 'देवानन्दाभ्युदय' काव्य, श्रीहपना नैषधीय महाकाव्यनी पादपूर्ति करी 'श्रीशान्तिनाथचरित्र,' कविकालिदासना 'मेघदूत' नी पादपूर्ति करी 'मेघदूत समस्या लेख' नामे सांवत्सरिक क्षमापना-पत्र वगेरे पादपूर्तिना परम कोटिना ग्रन्थो बनाव्या छे जे हाल पण सुलभ छे. आ शिवायना चन्द्रप्रभाव्याकरण, वर्षपबोध, मातृकाप्रसाद, विजयदेवमाहात्म्यविवरण, युक्तिप्रबोधनाटकादि पण तेमना बनावेल विशिष्ट ग्रन्थो छे. आ सप्तसन्धान पण तेमनी कलमथी आलेखायुं छे.
ए प्रमाणे मुख्यत्वे आ छ विशेषताओ अने बीजी नानी नानी अनेक विशेषताओथी भरपूर आ सप्तसन्धान महाकाव्य काव्यसृष्टिमां सर्वश्रेष्ठ स्थानने अनुभवे छे.
सांभळया प्रमाणे ग्रन्थकारे पोतेज आ काव्यनी टोका बनावी हती, परन्तु हाल ते उपलब्ध नहि होवाने कारणे, विद्वानो आ काव्यना वाचन, पठन-पाठनमा अपवृत्त हता. परन्तु शासनसम्राट सर्वतन्त्रस्वतन्त्रमूरिचक्र चक्रवर्ति-पूज्यपाद-परमकृपालु-भट्टारकाचार्य महाराज श्रीमद्विजयनेमिनरीश्वरजी महाराजश्रीना पट्टालङ्कारअमारा प्रगुरुवर्य-कविरत्न शास्त्रविशारद पीयूषपाणि पूज्याचार्य महाराज श्रीविजयामृतमूरीश्वरजी महाराजश्रीए वर्षोना परिश्रमे आ काव्यनी 'सरणी' नामनी टीका बनावी, काव्यनो पवेशमार्ग खुल्लो करी आप्यो छे.
पण्डितोना पाण्डित्यनी आ काव्यमा परीक्षा छे. विद्वानोनी प्रतिमा अहिं कसोटीए चडे छे. साहित्यवेदिओन वैदुष्य आ काव्यथी चकासाय छे.
जेणे एक वखत पण आ काव्य हृदयथी वांची-विचारी आत्मसात् कर्यु छे, ते साहित्यसृष्टिमां अस्खलितपणे-अबाधितपणे सर्वत्र विचरी शके छे. आ ग्रन्थनुं अभ्यन्तर-स्वरुप विद्वानोना