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________________ अशुद्धम् धर्मवा दरीद्रावित्यस्य शुद्धम् धर्मवा ददरिद्रावित्यस्य . . गृहे प्रहे कृते ताक्तैवेष्ठ कृतेऽपि तावतैवेष्ट . लक्ष्य . सत्वं बाध्या ध्यन्त्य ज्ञापक कथनं तत्र वृद्धेर्बली प्रयोजक . . रुत्वं बाधा घ्यन्त ज्ञापकत्व कथनम् तत्र लोपस्य वृद्धर्बली प्रयोजकं शास्ति भयोकार वार्ण उपायान्तर . भयेकार बार्ण उपायातर बोधे फले न्यायेनोप सत्सप्तम्यैव नन्वेत वृत्तिषु व्यपेक्षा पद ग्रहणं न्यायेनौप सत्सप्तम्येव नत्वेत वृत्तिषु पक्षे व्यपेक्षा पदग्रहणं ज्ञापित्वे ज्ञापिते 0 0 0 MAANANA 8 X6 A Dm स्वद्भाधनार्थ अकबू तत्सम्बन्ध व्यवस्थापकत्वं तल्लकि ततो विसर्गे निर्देशोऽयं स्वेन बाधे सार्थक कृते चारितार्थ्य ऐस् भावा नेदमसोरकि स्वार्थिकतममपि विशेषश्चप्रति अदाधनदाय पूगादमुख्यकाओ तद्वाधनार्थ अकच् तत्सम्बद्ध व्यवस्थापक तल्लुकि विसर्गे निर्देशोऽमुं त्वेन बाधे सार्थक्य कृतेऽचारितार्थे ऐसभावा नेदमदसोऽकि खार्थिकतमपि विशेषश्चाग्रे प्रति अदाधनदाद्योः पूगादमुख्यकाञ्यो . WWW
SR No.008446
Book TitleNyayasamucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLavanyasuri
PublisherVijaylavanyasurishwar Gyanmandir Botad
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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