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________________ युक्ति प्रकाशः निराकरणार्थ, असौ शवोऽनुभूतरूपादिगुणान्वितो भवति, अत्र हि रूपादिगुणास्तु सत्येव, परमनुभूता इति नो दृश्यंते, वायाविच, ननु कस्तावद्वाया वनुभूतगुण इति चेच्कृणु, रूपादिरेव, ननु वायौ रूपमेव नास्ति, अनुभूतत्वं तत्र तस्य कुत इति चेन्न, स्पर्शेन वायो रूपस्य साधितत्वात, तथाहि प्रयोगः-वायू रूपवान् स्पर्शवत्त्वात् , यस्तथा स तथेति, वायुवत शहोऽप्यनुभूतरूपवानिति वृत्तार्थः ॥ २३ ॥ | टी. भा.-हवे (ते) शहन गुणपणुं निषेधीने पोताना मतमा सिद्धथयेलं द्रव्यपणुं देखाडेछे. शह द्रव्यरूप छ; शामाटे ? ते कहेछे- गतियुक्त भावथी (एटले) (लेशह) गतिवालोछे तेथी, एवो अर्थ छे. (वली) गति तो द्रव्यमांज देखायेलीछे; परंतु गुणआदिकोमा नथी. द्रव्यपणामाटे हेतु कहेछे के ते व्याघात करनारोछे. जे व्याघात करनारुं छे, ते द्रव्यज देखायुं छे; जेम भीतआदिक (अने) गुणआदिकोने तो व्याघातकपणानो नथी. संभव देखायछे बली तीव्रशदोबडें करीने मंदशहोर्नु व्याघातकरवापj. माटे बली द्रव्यपणामाटे बीजो हेतु कहेछ के-(ते शह) गुणोवालो छे. गुणो (एटले) संख्याआदिक जे गुणो तेनु बडेकरीने से युक्त छे. एक, बेत्रण अथवा शहो में सांभल्या; एवीरीतनी बाधाविनानी प्रतीति उत्पन्न थायछे. हवे वली तेना द्रव्यपणामाटे हेतु कहेछेके-(ते शहने) अर्थक्रियानुं करवापणुं पणछे (माटेपण ते द्रव्य छे) जे अर्थक्रिया करनारं छे, ते द्रव्य छे. जेम घडो. शंकर करेछे के नीलरूपने गुणपणामां पण आंखना तेजनी वृद्धिने उत्पन्न करवापणाधी अर्थक्रिया कारिपणाथी व्यभिचार ( आवेछे) एम जो (कहीशतो) (ते युक्त) नथी. केमके नील रूप कई आंखना तेजने वधारना नथी. परंतु तेना आश्रयवालं द्रव्य ज ( वधारनारु.) ते कहेछे- नीलरूपना आश्रय
SR No.008437
Book TitleYuktiprakasha Sutram
Original Sutra AuthorPadmasagar Gani
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size1 MB
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