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युक्ति
प्रकाशः
केम ? तेमाटे हेतु कहेछे. प्रमाकृतौ (एटले ) प्रमानेउत्पन्न करवामां तद् एटले ते संनिकर्षनो व्यभिचार देखायछे भावार्थ तो आम छे. - प्रमाने साधनाएं ते प्रमाण ( कहेवाय) एवं प्रमाणनुं लक्षण तें स्वीकार्य छे. ज्यारे आ होतेछते होयजछे; अने नहोते छते नथी ते तेने साधनाएं ( केमके) क्यांक संनिकर्ष होते छते पण प्रमानी उत्पत्ति नथी थती, (अने) क्यांक न होते छते पण प्रमानी उत्पत्ति थाय छे, एवीरीते अहीं अन्वय अने व्यतिरेकें | करीने व्यभिचार देखायछे. तेकहेछे. आकाशने सर्वव्यापकपणाये करीने, सघलारूपी पदार्थोनुं संयोगिपणुं ए सर्वव्यापकपणुं छे एवां वचनधी आकाश अने नेत्रने घडा अनेनेचनी पेठे संनिकर्षे करीने घडा संबंधिप्रमाने उत्पन्न करी शकतुं नथी। वली त्यां योग्यपणाना अभावधी संनिकर्ष तेनाप्रमाने नथी उत्पन्नकरतो एम न कहेवुं (केम के ) योग्यतानो स्वीकारकरते. छते कोकटवच्चे रहेलाएवा संनिकर्षे करीने शुंछे ! योग्यता एटले प्रतिबंधकनो अभाव ( जाणवो ) अने ते पोताना आवरणवा क्षयोपशमरूप भावेंद्रियछे. अने एवीरीते तो अमाराज मतमां प्रवेशथइ गयो. विशेषणना ज्ञानथी | विशेष्यनो प्रमा उत्पन्न होते छते क्यांक संनिकर्ष पण नहोते छते पण प्रमाणनी उत्पत्तिथायछे भाटे नक्की धयुंके ते | संनिकर्ष प्रमाणरूप नथी. वली गाम नथी, तो सीमा क्यांथी होय ? ए न्यायथी घटादिक पदार्थो वडेकरीने संनिकर्ष ज नथी संभवतो, (माटे ) तेना प्रमाणअप्रमाणपणानो विचार तो दूरें रहो, एम देखाडेछे, अप्राप्य | एटले प्राप्तथयेला पदार्थने नहीं ग्रहणकरनारु जे अंबक (एटले ) नेत्र तेने घटादिक पदार्थों करीने संनिकर्ष क्यांथी थाय ? न कोइपण रीते थाय. एवो अर्थ छे. जो चक्षु प्राप्यकारि होय तो तेने पदार्थनी प्राप्तिवडे करीने संनिकर्ष १४ | संभवे एवो भावार्थछे एवीरीते काव्यनो अर्थ छे. ॥ ६ ॥
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