________________
3
क साथ मिलाकर उन्हातले विषय गही सुझबुझ बता भी है। वह एक भूत बात है। उनका यह प्रयत्न संशोधन क्षेत्रकी एक आदर्श कृति है । भोपाल केम्प ता. १३-१०-६०
-*
द्वारका ज्योतिपीठके जगद्गुरू श्री शंकराचार्य जी महाराज के शुभाशीर्वाद और शुभ संदेश :
शिल्प - स्थापत्य कला विशारद, शिल्पप्रवर श्री प्राशकर ओ. सोमपुरा का ग्रन्थका प्रकाशन - कार्य बढी प्रसंशाका पात्र है। गिल्प स्थापत्य कलाके ग्रंथ क्षीण होते जा रहे हैं । राज्याश्रय से रहित होकर शिल्पिलौंग आज अन्य व्यवसाय में जा रहे हैं । भिस तरह जिस देशमें विद्या और कलाका ह्रास होता जा रहा है। जैसे जमाने में प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथजीके महाप्रासादकी आर्यजनक और असाधारण र नामें कौशल्यवान शिल्पज्ञ महोदय श्री प्रभावश कर भाइने अपनी कलाका जो निर्माण किया है यह एक आनंदका विषय है ।
--
पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् विजयोदयसूरिश्वरजी महाराजके शुभाशिर्वाद :
शिल्पशास्त्री श्री प्रभाशंकरभाह शिल्पविशारद से किया गया ग्रंथ संपादनका कार्य शिल्प स्थापत्य के कार्यास उपकारक हो । जैन आगमोमें शिल्प विषयक संदर्भ मिलते है । यह ग्रंथ शिल्पज्ञान उपर कलश समान है । आर्य साहित्य-ग्रंथांका सर्जन संस्कृत भाषा में हुआ है। शिल्प विशारद स्थपति श्री प्रभाश कर ओढ भाइ सेोमपुराने बहुत से भव्य जिनमंदिरे और पर जिनालय, कलामय उपाश्रय, धर्मशालायें, ज्ञानशाला ए आदि धार्मिक स्थापत्यका सर्जन किया है । करीव चालीस सालसे अनवरत a fre विषयमें हमारे परिचयमें आये हैं । उनके सुपुत्र श्री बलवंतराय स्थपति भी पीछले पंद्रह वर्षो से हमारे परिचयमें रहे हैं । हमारे आशिर्वाद हैं कि आर्य स्थापत्य और सद्धर्म के आदर्शों को अपना कर आपकी प्रगति हो ।