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(२५) गृहस्थके घरमें पूजामें दो लिंग, तीन गणपति, तीन देवीमूर्तियां, तीन शंख, मत्स्यादि दश अवतार, द्वारिकाके दो मुखबाले दो शालिग्राम, द्वारिकाके दो शंख और सूर्य की दो मूर्तियां-इन सब एक पूजामें रखना नहीं चाहिये, क्योंकि उससे उद्वेगकी प्राप्ति होती है ।
नैक हस्तादि तोऽन्यूने प्रासादे स्थिरतां नयेत् । स्थिर न स्थापयेद्रेहे गृहीणां दुःख कुच्चयत् ।। ५१ ॥ सूत्रसंतात
એક ગજથી નાની દેરીમાં સ્થિર લિડ કે પ્રતિમાનું સ્થાપન ન કરવું ગૃહસ્થ પિતાના ઘરમાં મૂર્તિ કે લિડની સ્થિર સ્થાપન કદી ન કરવી. સ્થિર કરવાથી તે દુઃખદાયક થાય છે. ( રૌદ્ર પ્રતિમા ચંડી, ભરવાદિની ગૃહસ્થને ઘેર સ્થાપના ન કરવી. પૂજામાં પ્રતિમા ચળ રાખવી. ) પ૧
एक गजसे छोटी देवकृलिकामे स्थिर लिंङ्ग या प्रतिमाकी स्थापना करना नहीं । गृहस्थको अपने घरमें मूर्ति या लिंङ्गकी स्थापना नहीं करना । स्थिर करनेसे गृहस्थको दुःख कारक होता है। रौद्र प्रतिमा चंडी-भैरवादिकी स्थापना गृहस्थके घर कभी नही करना, पूजाके लिये चल प्रतिमा ही रखना । ५१ प्रतिमा काष्ट लेपाश्म दंत चित्रायसां गृहे । मानाधिका परिवार रहिता नैव पूजयेत् ॥ ५२ ॥ मत्स्यपुराण
प्रतिभा (१) ४०टनी, (२) अपनी, (3) पाषानी, (४) giant, (५) यिनी, (6) वायधातुनी, २ भानथी न्यून अधि डाय ॐ પરિવાર રહિત હોય તે તે ગૃહસ્થને ઘરે પૂજવી નહિ. અર્થાત ધાતુની પ્રતિમાનું ગૃહે પૂજન કરવું. (નેટ – ચિત્ર, લેપ કે દાંતની પ્રતિમાના દેષ અન્ય ગ્રંથમાં કહ્યા નથી. ) પર
प्रतिमा (१) काष्टको (२) लेपकी (३) पाषाणकी (४). दांतकी (५) चित्रकी-ओर पंचधातु लोहकी मानसे अधिक या कम हो या परिवार रहित हो तो गृहस्थके घर पूजना नहीं अर्थात् धातुकी प्रतिमाका गृह
मना करना । (नोटः चित्र, लेप या दांवकी प्रतिमाका. दोष अन्य अन्यौमें कहा नही है । ५२