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( १२६ ) स्नान कराया बाद नीम्न मंत्र पढ़कर मूर्ति कलशकी पास पधरानी
नाना रत्न समायुक्त कांचन रत्नभूषितम् ।
आसनं देवदेवेश प्रीत्यर्थ प्रतिगृह्यताम् ॥३१९।। नमस्कार- नमस्ते देवदेवेश नमस्ते मुरपूजिते ।
नमस्ते जगदाधार नमस्ते वास्तुदेवते ।।३२०॥ . वस्त्र अर्पण- जीवम सर्व लोकानां लज्जाया रक्षणं परम् ।
सुषेषधारि वस्त्रं हि कलशे वेष्टयाम्यहम् ॥३२॥ स्थापनकी मूर्तिका अर्चन-चंदन कुमकुमादि से करना. पुष्प अर्पण करना धूप करना धृतदीप अर्पण करना फीर नैवेद्यः आचमन, ताम्बुल, आरती. आरति- चक्षुदं सर्व लोकाना तिमिरस्य निवारणम् ।
आतिक्यं कल्पित भक्त्या गृहाणा सुरसत्तम् ॥३२२॥ प्रदक्षणोपद- यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।
तानि तानि विनश्यति प्रदक्षिणपदे पदे ॥३१॥ नमस्कार- अपराध सहस्त्राणि क्रियतेऽहनिशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्य परमेश्वर ।।३२४।। नमस्ते वास्तुपुरुष भूशय्यानिरत प्रभो । मद्गृहे धनधान्यादि समृद्धि कुरु सर्वदा ॥३२५॥
॥ अथ वास्तुपूजा ॥ वास्तुका स्थापन बाजोठ-पीठीका १४१ गजकी पर श्वेतबस्त्र, पर पीतवस्त्र पाथरवु उस पर चावलका अष्टदल कमल करके वास्तुकी आकृती करना मध्ये ब्रह्माका पदमे जलपूर्ण कलश. श्रीफल पंचरत्न रखता. वहां सुवर्णकी वास्तुपुरुषकी मूर्ति विधिपूजन करके स्थापन करना. ओर सुवर्ण महोर या. रुः पा रखना-नीन मंत्र पढके स्थापनकी बीच कलशकी स्थापना करना. ॐ श्री सिद्धयै नमः । ॐ ब्रह्मणे नमः । ॐ ब्रह्मासने स्थिरो भव ॥