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* प्रासाद मजरी *
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पूर्व में प्रनाल रखनी । अर्थात् देवमंदिर गर्भगृहकी प्रनाल पूर्व या उत्तर इन दो दिशाओं में ही रखनी चाहिये मंडपके बाई - दाईं ओर प्रनाल रखनी । जगती के चारों ओर प्रनाल रखनी । मयऋषि कहेते हैं कि पूर्वाभिमुख लिङ्गकी नाल वाम भागमें रखनी । ५०-५१
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अथायतन:- ये प्रासाद मंजरी ग्रंथ में दीया हुआ पाठ अपूर्ण एवं अशुद्ध होने से अन्य ग्रंथका प्रमाण लिया हुआ है। देवों का जो क्रम लिया है वो अग्नि, नैरुत्य, वायव्य एवं इशान कोणकी स्थापना का क्रम समजना ५२, ५३, ५४
१ सूर्यायतनमें: - अग्नि कोणके क्रमसे गणेश विष्णु चंडी एवं शंभुकी स्थापना करनी और सूर्य मंदिरमें आदित्य नव ग्रहो गणादिकी मूर्तियाँ बनवानी । २ गणेशाय नमः --- कोणके क्रमसे चंडी, शिव, विष्णु एवं सूर्यकी स्थापना करनी | गणेश मंदिर में अपने हितवान्छुको बत्रीश प्रकारके गणेश स्वरुप और बारह गणकी मूर्तियाँ बनवाना ।
३ विष्णु आयतनमें कोणके क्रमसे गणेश, सूर्य, अंबिका एवं शिवकी स्थापना करना । विष्णु मंदिर में गोपी दशावतार, विष्णव स्वरुप द्वारका जैसी मूर्तियाँ बनवाना । ४ चंडयायतन में कोणके क्रमसे: शिव, गणेश, सूर्य एवं विष्णुकी स्थापना करना | देवी मंदिर में षोडश मातृकादि देवी स्वरुप, योगिनीयोंका स्वरुप भैरवादय मूर्तियाँ बनवाना |
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५ शिवायतन में कोणके क्रमसे सूर्य, गणेश, चंडी, एवं विष्णुकी स्थापना करना | शिवालय में शिवजीकी द्वादश मूर्तियाँ आदि बनवाना । ७
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इन पंचाययन स्थापनामें शिव स्थापन पर दृष्टि वेध आगे कहा ऐसा वेध नहीं होने देना । त्रिमूर्ति स्थापना - एक पंक्ति में ब्रह्मा विष्णु एवं शिवकी मूर्तिके त्रिपुरुष प्रासाद में स्थापना करनी हो तो मध्यमे रुद्रकी मूर्तिकी स्थापना करना । उनकी दाई ओर ब्रह्मा । ओर बाईं ओर विष्णुकी स्थापना करना । ( इससे विपरीत आगे पीछे
उलटा सुलटा स्थापित करने से महाभय उत्पन्न होता है ) रुद्रकी मूर्तिके मुखके तीन भाग करके एक भाग नीचा विष्णु और उससे आधे भागका ब्रह्मा जी और पार्वतीजीकी मूर्तिकी स्थापना करनी ।
१ पंचायतन मे प्राधान्य देवके प्रासादके चारों कोणों में चार देव देवीका मंदिर या देरियां बनाने की विधि है उनमें मंदिरोंकी फिरती जंघादि में मूर्तियां बनावानी पूजा विधि में पचायतन देव स्थापना करते हैं। गर्भगृहमें भी इसी प्रकार स्थापना करते है इसी प्रकार कोण प्रमाणसे आयतन का प्रयोग प्रासाद रचनामे जानना चाहिये अन्य ग्रंथोंमे सायतन विषयमे' उलट सुलट मत भी है ।