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________________ . * Prasad Manjari * स्तंभोध भरणंशीर्ष पट्टोदोर्द्ध करोटकम् । द्वारमान एकास्ते सुरागारे दैर्द्धद्वारं कलांगुलम् ॥७२॥ षोडशाङ्गला या वृद्धयाः प्रतिहस्त युगान्तकै । ऽयंगुलाचाऽष्ट हस्तांते द्विवृद्धद्या स्थात् शतार्द्धके ॥७३॥ द्वारोच्छ्याई विस्तिर्ण षोडशांशाधिक हिवा । शाखास्त्वंग समा एक त्रिपंचादि नवांशके ॥७४॥ हीनानेष्टाऽधिकाश्रेष्ठास्तास्युर्देवालयं गवत् । देवानां सप्तशाखवा नवांत हरिरुद्रयो ॥७५॥ पंचशाखं सार्वभौमे त्रिशाखं मंडलेश्वरे । द्वारेस्वस्व प्रतीहारान् परिकरयुतस्थितान् ॥७६।। द्वार'द्वैध्ये चतुर्थी शे द्वारपाल प्रकारयेत् । दुम्बरार्धचन्द्र मूलकर्णस्य सूत्रेण कुंभिनादुम्बर समम् ॥७७॥ गर्भ का तस्यात् मंदारस्तुत्रिभागतः । द्वार व्यास समौदैश्यों अर्द्धचन्द्रस्त्वर्धनिर्गत:13 ॥७८।। खुरकेन समोत्सेध स्वत्रार्धा शस्तु चंद्रिका । मंडपेषु समस्तेषु पीठान्ते रङ्गभूमिका ॥७९॥ 10. Missing in B. 11. न्यसेत् परिकर स्थितान् in A. 12. कोणेना in A. 13. Abseat iu B and C.
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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