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* Prasad Manjari *
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५ गोपुरम् ५ पुष्कर नामक बलाणक जानना । एक दो तीन चार छ एवं सात पद दूर स्थल विस्तारके प्रमाणसे बलाणक बनाना । बलाणकके द्वार उत्तरङ्ग, पाट मूल प्रासादके अनुसार समसूत्र उदयमें रखना । १५०, ५१, ५२.
१ प्रासादकी जगतीके आगे या जगतीके बराबर देव प्रासादके आगेका बलाणक का नाम " वामन" कहा है।
२ राजप्रासादके आगेका बलाणकको “विमान" एवं उत्तुङ्ग भी कहते है। उत्तुङ्ग पांच या सात या नौ भूमि मंजिलका होता है । नव भूमि से ज्यादा उदय करना नहीं ।
३ सामान्य घरोंके भवनके आगेका बलाणक “डेहली" को "हर्म्यशाल" कहते हैं । वह मूल भवनका उदयसे नीचा रखना ।
४ नगरके द्वार-दरवाजे परका बलाणकको गोपुर नामक जानना । उसकी गोंपुर जैसी आकृति करनी । रखना। यदि ऊंचा होवे तो वेध दोष जानना । द्रविड प्रदेशमें मूल प्रासादसे द्वारपरका गोपुरम् बहुत ऊंचा करते हैं । यह प्रथा पुरानी नहि है। विजय नगर राज्यकी उन्नति कालसे चारसो पांचसो साल से द्वारपरका गोपुर ऊचा करनेका एवं परिघका दो तीन पांच किल्ला करना ।
मंडपके उपर वितान (गुम्बज) अर्थात् आकाश या उपरकी चंदनी आच्छादित