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________________ 85 * Prasad Manjari * IITHAT hu K HTRA T ५ गोपुरम् ५ पुष्कर नामक बलाणक जानना । एक दो तीन चार छ एवं सात पद दूर स्थल विस्तारके प्रमाणसे बलाणक बनाना । बलाणकके द्वार उत्तरङ्ग, पाट मूल प्रासादके अनुसार समसूत्र उदयमें रखना । १५०, ५१, ५२. १ प्रासादकी जगतीके आगे या जगतीके बराबर देव प्रासादके आगेका बलाणक का नाम " वामन" कहा है। २ राजप्रासादके आगेका बलाणकको “विमान" एवं उत्तुङ्ग भी कहते है। उत्तुङ्ग पांच या सात या नौ भूमि मंजिलका होता है । नव भूमि से ज्यादा उदय करना नहीं । ३ सामान्य घरोंके भवनके आगेका बलाणक “डेहली" को "हर्म्यशाल" कहते हैं । वह मूल भवनका उदयसे नीचा रखना । ४ नगरके द्वार-दरवाजे परका बलाणकको गोपुर नामक जानना । उसकी गोंपुर जैसी आकृति करनी । रखना। यदि ऊंचा होवे तो वेध दोष जानना । द्रविड प्रदेशमें मूल प्रासादसे द्वारपरका गोपुरम् बहुत ऊंचा करते हैं । यह प्रथा पुरानी नहि है। विजय नगर राज्यकी उन्नति कालसे चारसो पांचसो साल से द्वारपरका गोपुर ऊचा करनेका एवं परिघका दो तीन पांच किल्ला करना । मंडपके उपर वितान (गुम्बज) अर्थात् आकाश या उपरकी चंदनी आच्छादित
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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