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________________ • Prasad Manjari मेरु प्रसाद - पांच हाथका एक सौ एक अंडक - शृङ्गका करना; जिसमें बीस बीस अंडकी वृद्धि करते हुए पचास हाथ तकके मेरु प्रसादके लिये एक हजार एक अडक होने पर, वह " महामेरु प्रासाद" कहलाता हैं; पूर्वोक्त मेरु प्रासाद राजाओं के लिये ही बनवाने, दूसरे वर्णोंके लिये नहीं; मेरु प्रसाद ब्रह्मा, विष्णु, शिव एवं सूर्यके लिये बनवाने चाहिये, अन्य देवोंके लिये नहीं. १३३-३४ अथ मण्डप --- - प्रासादके आगे एक या तीन द्वारका मंडप बनाना: जिन ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रासादों के लिये गूढ स्त्रीक एवं नृत्य मंडप अनुक्रम से बनाने । एक या दो हाथी डेरीके आगे चोकी चतुष्किका बनानी । तीन हाथ के प्रासादके लिये दूना, चार हाथके लिये पोने दोगुना, पांच हाथसे दश हाथके लिये ड्योढा और दशसे पचास हाथ तक के प्रासादों के लिये सवा गुना अथवा सम. (अर्थात् जितना प्रासाद होवे उतना ) मंडप बनाना । यह शुभ जानना । प्रवेश मंडप गर्भगृह से ड्योढा या दुगुना बनाना । १३५-३६-३७-३८ जयमत- विश्वकर्मा के पुत्र जय कहते हैं कि प्रासादके प्रमाणसे मंडप सम अर्थात् प्रासादके बराबर सवागुना, डोढगुना; पोनेदोगुना अथवा दूना करना। ऐसा पंच विध प्रमाण कहा है। १३९ 75 * ७५ अथ चतुष्किका प्रावि मंडप - एक पदसे अठारह पदकी चोकी चतुष्किका की रचना के प्राभिय मंडपांके बारह स्वरुप कहे हैं । २८ १ एक चोकी; २ तीन चोकी. ३ तीन चोकी और आगे एक चोकी, ४ छ चोकी; ५ छः खोकी और आगे एक चोकी; ६ नव चोकी; ७ नव चोकी के आगे एक चोकी: ८ नव चोकीके दोनों ओर एकैक चोकी: ९ नव चोकीके आगे ओर दोनों ओर एकैक चोकी मिलकर बारह पदः १० बारह पढ़के दोनों ओर एकैक चोकी: ११ बारह चोकीके दोनों ओर दो दो चोकी; १२ पंदर पद ५३ के आगे तीन चोकी; इस प्रकार बारह प्रकारके प्रावि मंडप चोकीके चार स्तंभों से २८ स्तंभ संख्या तक जानना । एक पद चोकी । १४०-१४१ मंडपका मध्य पदका अनुसरण करते हुए अन्य पदके स्तंभोका पद रखना | मंडप परकी संवरणा परकी घंटा (अथवा गुम्बजका आमलसारा) शिखर के शुकनाश अट्ठाइका एक भेद, दशाइके चार भेद, बागहाइके एक, चौदाइके छ भेद, सोलहाइके तीन भेद, अठारहाई के चार भेद, बीसाईके तल पर चार भेद और बाइसाई तल पर दो भेद कहे हैं। इस प्रकार कुल आठ विभक्तियों पर पच्चीश भेदके शिखर कहे हैं । २८ इन बारहके नाम और स्वरुप अपराजित सूत्र में कहे हैं एवं दीपाव ग्रंथके प्रकाशमें उसके तल दर्शन के मानचित्र भी दिये हुए हैं; चोकी चतुष्किका अर्थात चार स्तंभके पदको चौकी कहते हैं ।
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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