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* Prasad Manjari * विभक्ति ॥५॥ प्रासाद के क्षेत्र के १६ भाग करके कर्ण रेखा पढरा-प्रतिरथ और भद्रार्ध दो दो भागके रखने-कर्ण एवं प्रतिरथके बीच एक भाग कोणी तथा भद्रके पास में एक भागकी नन्दी करनी । भद्रका निकाला एक भागका रखना । रेखा--कर्ण पर दो उसके पास कोणी के उपर एक एक तिलक चढाकर प्रत्यक्ष चढाना 1 प्रतिरथ पढरे पर दो दो शंङ्ग और भद्रके उपर तीन तीन उरुशृङ्ग चढाने
और भद्र नन्दी पर एक एक शृङ्ग चढाने से तेरहवां " इन्द्रनील" प्रा० तुल भाग २६ अंडक ५३ जानना । ११७-११८ इति इन्द्रनील । ___ चौदहवाँ प्रामाद- इन्द्रनील के स्थान पर कर्ण रेखा के उपरका एक शृङ्ग छोडकर वहाँ तिलक चढाना और रेखाके पासकी कोणी के उपर तिलक छोडकर यहां शङ्ग चढाने से पौदहवाँ "महानील" प्रा. तल भाग १६ अंडक ५७ जानना । ५१९ इति महानील। . पंद्रहवां प्रासाद-महानील के स्थान पर रेखा कर्ण परका तिलक तजकर शङ्ग चढाने से पंद्रहवां “भूधर" प्रा० तल भाग १६ अंडक ६१ जानना १२० इति भूधर ।
विभक्ति ।।६।। प्रासादके क्षेत्रके १८ भाग करके उनमें उपरोक्त सोलाइ तलके भद्रकी ओर एकके स्थान दो दो नन्दी करनी। शेष सोलाइ तलके समान तल भाग जानने। कर्ण के उपर दो शङ्ग और एक तिलक चढाना । रेखा-कर्ण के पास वाली कोणी पर एक शङ्ग ओर उस पर तिलक चढाकर उस पर प्रत्याङ्ग दो दो भागके करने । शेषकी दो नन्दी पर दो दो तिलक चढाने । भद्रके उपर चार ऊरशङ्ग और प्रतिरथ-पढरे पर सीन तोन शङ्ग चढाने से सोलहवां " रत्नकूट" प्रा० तलभाग १८ अंडक ६५ का शिवलिङ्ग हेतु । कामना को पूर्ण करने वाला जानना । २२१ इति रत्नकूट । __ सत्रहवां प्रासाद रत्नकूटके स्थान पर रेखा-कर्ण पर दो के स्थान पर तीन तीन शङ्ग चढाने से सत्रहवां वैडूर्य प्रा० तल भाग १८ अंडक ६९ जानना । १२२ इति वैडूर्य । ___ अठारहवां प्रासाद-वैडूर्य के स्थान पर रेखा-कर्ण के उपर के तीन शङ्ग में से एक छोडकर प्रतिरथके पासवाली नंदी पर शङ्ग चढाने से अठारहवाँ “पद्मराग" प्रा० तल भाग १८ अंक शृङ्ग ७३ जानना । इति पद्मराग।
उन्नीसवाँ प्रासाद-पद्मरामके स्थान पर कर्ण-रेखा पर जैसे कि पूर्व ही थे उसी प्रकार तीन तीन शङ्ग रखने से उन्नीसवा " वनक" प्रा० तल भाग १८ शङ्ग ७७ जानना १२३ इति वनक ।