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________________ 33 * Prasad Manjari * - - यस्ता निसारखा पशास्य. गंधनाया विस्तारभाग ११ मवशावा. पधिनी. विस्तारमाग६. सावा नाम्पनी खल्या शा . यश गधारया विस्तारभाग ८. भत्तशरया. द्वार शाखाकी म. उपशाखाओं के एक, तीन, पांच, सात, गंधर्वशारया. एवं नव अंग खाचे 1. क्याम होते हैं। शाखाकी माया पृथुता(मोटाई) अल्प खल्यशाया रुपमा करना नेष्ट और रुपम अधिक करना श्रेष्ठ फलदाता है। देवासरशारण. पत्यशामा लयके अंग (रथ सिंहशाया. प्रतिरथ नंदी भद्रादि) यशस्विमा. ब) के अनुसार उसकी सयभ. शाखा रखनी । सप्त शाखा सर्व देवोंको किय शाखा. और नव शाखा विष्णु सिंहशाया. या रुद्रके प्रासादके त्रि-पंच-सप्त-नव शाखा तळ विभाग-नाम तथा प्रतिशाखो लिये बनानी; पच शाखा सार्वभौम राजा के द्वार में और त्रिशाखा मंडलेश्वर राजा के द्वारमें बनानी। द्वारकी शाखाओं में जिस देवका REKINNARASI प्रासाद हो उसके प्रतिहार (द्वारपाल) के स्वरूप बनाने, बल्कि मध्यकी शाखा रूपवाली देव के परिकर स्वरूप बनानी, द्वार शाखाकी ऊंचाई के चौथे भागका द्वारपाल बनाना अथोंदुम्बरअर्धचंद्र-प्रासादके मूलरेखा-सूत्र के प्रमाण से उदुम्बरका सूत्र रखना और कुम्भीकी उंचाई के बराबर समसूत्र में उदुम्बर द्वारशास्त्राके ठेका-प्रतिहारी-चामर छत्रधारी ( उंबरा) रखना या कुंभीके. अर्ध, HANSH JARATHI) C
SR No.008427
Book TitlePrasad Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size5 MB
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