________________
क्षीरार्णव अ. १00 क्रमांक अ. ३ देव प्रासादकी जगतीके उदयमें यथास्थान पर दिशाके अनुसार दिग्पालोंके स्वरूप वगैरह देवोंके स्वरूप करना । प्रासादके पीछे जगतीके भद्रमें तीन कुमारिकाओंका (प्रातः मध्याह्न और संध्याके) स्वरूप करना । १४
प्रासाद विस्तरं तुल्यं प्रासादार्द्ध प्रमाणतः पादेनं वाथ कर्तव्यं सोपाना याम किर्तितः ॥१५॥ शुंडिकासन विनेया तत्पदे गंड विस्तरम् द्वितीय तत्सम ज्ञेयं ध्रुडिकोऽभयः स्थिता ॥१६॥
प्रतोल्या वरय
विधिम प्रतोल्या ।
चनुस्थम
------चित्रस्यदर्शन
विवार अनोख्या
मकर अतोल्या चतुफिकास्य विशवस्यमा
बेडकासन
PO.S.