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श्रीरार्णव अ. - ९९ क्रमांक अ.-१
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१८. योनिवैर —– अश्वोऽश्विनी शतभयी भरिणी पौष्टमयोग जिः कृतिका पुष्ययोच्छागो रोहिणी मृगयो रहिः ॥४२॥ वा भ्रूलार्दयोर्योनिः सर्पादित्यो बिडालक : पूर्वाफा मघयोशखु रुफोत्तर ययो स्तुगौः ||४३|| हस्त स्वात्योस्तु महिषी व्याघ्रचित्रा बिशाखयोः ज्येष्ठानुराधयो रेणः पुषाढा श्रवणे कपिः ॥४४॥
अश्विनी और शतभिया की अयोनि । भरणी और रेवतीकी गजयोनि ॥ कृतिका और पुष्यकी अजयोनि । रोहिणी और मृगशीर्षकी सर्पयोनि ॥ मूल और आद्रीकी वनयोनि । आश्लेषा और पुनर्वसुकी बिडालयोनि ।। पूर्वाफाल्गुनी और मघाकी मूपकयोनि । उ. भाद्रपद और उ. फाल्गुनीकी गौयोनि ॥ स्वाति और हस्तकी महिषी योनि । चित्रा और विशाखाकी व्याध योनि ॥ ज्येष्ठा और अनुराधाकी मेंढायोनि । पू. पाढा और श्रवणकी कपियोनि || उ. पाढा और अभिजितकी नकुलयोनि । पू. भाद्रपद और घनिष्ठाकी सिंहयोनि || ४२-४३-४४
उपादाभिजितोर्घः सिंहः सिहे: पूभाधनिष्ठयोः मेषमर्कयो रंगो व्यात्रं गज सिंहयोः ||४५|| श्राणं सर्पनकुलं बिडालोन्दुर के महत् । महिषाश्चमिति त्याज्यं मृत्युः स्त्री प्रभु वेऽस्मसु ॥ ४६ ॥
मेष योनीको मर्कट योनिसे बैर । गौ योनि और व्याघ्र योनिको वैर ॥ गज योनि और सिंह योनिको वैर । श्वान योनि और वानर योनिको वैर ॥ सर्प योनि और नकुल योनिको वैर । बिडाल योनि और मूषक योनिको वैर ॥ महिष योनि और अश्व योनिको वैर.
नक्षत्र और योनिका उपरके अनुसार परस्पर बैर है । जिससे स्त्री और पुरुष गृह और गृहपतिके नक्षत्रोंकी योनियोंका परस्पर वैर तज देना । नहि तो मृत्यु होती है । ४५-४६ इति योनि वैर अङ्ग || १८|
१९. अथ नक्षत्र वैर - रंचोत्तरफाल्गुन्यश्वि युगले श्वाति मरण्योर्द्धयो । रोहिण्युत्तर पाठ्योः श्रुति पुनर्वस्वो विरोध स्वथा ॥ चित्रा हस्तभयोव पुष्यफणिनो ज्येष्ठा विशाखद्वयोः प्रासादे भवनासने च शयने नक्षत्र वैरं त्यजेत् ॥४७॥